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________________ ३२८ सूत्रकृताङ्गसूत्रे यादृश्यो वेदनाः समुत्पद्यन्ते, ताः पञ्चमाध्ययने प्रतिपाद्यन्ते । तदनेन सबन्धेनाऽऽ. यातस्य पञ्चमाऽध्ययनस्य इदमादिमं सूत्रम्-'पुच्छिस्सहं' इत्यादि। मूलम्-पुच्छिस्सहं कवलियं महसि कहभितावा णरंगा पुरत्था। अंजाणओ मे मूणि वहिजाणं, कहनु बालानरयं उविति।। छाया-पृष्वानहं के बलिकं महर्षि कथमभितापा नरकाः पुरस्तात् । अजानतो मे मुने! बूहि जानन् कथं नु बाला नरकमुपपान्ति ॥१॥ निपात होता है अतएव नरक में होनेवाली वेदनाओं को इस पांचवें अध्ययन में कहते हैं । इस सम्बन्ध से प्राप्त पांचवें अध्ययन का यह प्रथम सूत्र है-'पुच्छित्सह इत्यादि । शब्दार्थ-- 'अहं-अहम्' मैंने (सुबर्मा स्वामीने) 'पुरत्या-पुरस्तात्' पहले 'केवलियं-केवलिनम्' केवलज्ञान वाले 'महेलि-महर्षिम्' महर्षि ऐसे वर्द्धमान महावीर स्वामी को 'पुच्छिस्स-पृष्टवान्' पूछा था कि 'पारगा-नरका:' रत्नप्रभादि नरक 'कहंभितावा-कथमभितापा:' कैसे पीडा करने वाले हैं 'मुणी-हे मुने' हे भगवन् 'जाणं-जानन्' आप इसे जानते हैं अतः 'अजाणो मे हि-अजानतो मे ब्रूहि' नहीं जानने वाले मुझको आप कहें 'चाला-बालाः' अज्ञानी 'कहिं नु-कथं नु' किस प्रकार 'नरयं-नरकम्' नरक को 'उविति-उपयान्ति' प्राप्त करते हैं ॥१॥ વશ થનારા પુરુષે અવશ્ય નરકમાં જ જાય છે. નરકમાં જનાર જીવને કેવી કેવી વેદના સહન કરવી પડે છે તેનું નિરૂપણ આ પાંચમા અધ્યયનમાં કરવામાં આવ્યું છે. આગલા અધ્યયન સાથે આ પ્રકારને સંબંધ ધરાવતા पायमा अध्ययनj ५ सूत्र मा प्रमाणे छे-'पुच्छिस्सहं' त्या: शहाय-- 'अहं'-अहम्' में (सुधमा स्वाभीमे) 'पुरत्था-पुरस्तात्' ५९ci केवलियं-केवलिकम्' उपशान 'महेसि-महर्षिम्' महब मेवा व भान महावीर स्वाभीने 'पुच्छिस्स-पृष्टवान्' ५७ हेतु -'णरगा-नरकाः' २९नअसा विगेरे न२। 'कहंभितावा-कथमभितापाः' पी पी ४२११ाणा हाय छ ? 'मुणी-हे मुने!' हे समपन् 'जाणं-जानन्' भा५ मा पातने ! छ। तथी 'अजाणओ मे बूहि-अजानतो मे बहि' न amanा मेवा भने मा५ । 'बाला-बालाः' मज्ञानी 'कहिनु-कथंनु' वी रीते 'नरयं-नरकम्' न२७ने 'उविति-उपयान्ति' प्रत ४३ छ ? ॥१॥ શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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