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રક્ષા
सूत्रकृताङ्गसूत्रे छाया---इत्येवमाहुः स वीरः धूतरजाः धूतमोहः स भिक्षुः।
तस्मादध्यात्मविशुद्धः सुविषमुक्तः आमोक्षाय परिव्रजेदिति ब्रवीमि।२२। अन्वयार्थ:--(धूयरए) धूतरजाः (ध्यमोहे) धूतमोहः-परित्यक्तस्त्रीमोहः (से भिक्खू) स भिक्षुः (से वीरे) स वीरो वर्द्धमानस्वामी (इच्चेवमाहु) इत्येवमाहकपितवान् 'तम्हा' तस्मात्कारणात (अज्झत्यविसुद्धे) अध्यात्मविशुद्धः (सुविमुके)
सभी स्पर्शों को सहन करने वाला मुनि होता है, यह कौन कहता है ? इस पर सूत्रकार कहते हैं--'इच्चेवमाहु' इत्यादि।
शब्दार्थ--'धूयरए-धूतराजाः' जिसने स्त्रीसंपर्क जनित रज अर्थात् कर्मों को दूर किया है और 'धूयमोहे-धूतमोहः' स्त्रीसंसर्गजमित अथवा रागद्वेषजनित मोह को जिसने दूर किया है 'से भिक्खू-स भिक्षुः' वह साधु है 'से चीरे-सः वीरः' उस चीर प्रभु ने 'इच्चेवमाहु-इत्येवमाहुः' इसी प्रकार कहा है 'तम्हा-तस्मात्' इसलिए 'अज्झत्थविसुद्धेअध्यात्मविशुद्धः' निर्मलचित्तवाला एवं 'सुविमुक्के-सुविमुक्तः' स्त्रीसंसर्ग वर्जित वह साधु 'आमोक्वाए-आमोक्षाय' मोक्षप्राप्तिपर्यन्त 'परियएज्जासि-परिव्रजेत्' संयम के अनुष्ठान में प्रवृत्त रहे 'त्ति बेमि-इति ब्रवीमि' ऐसा मैं कहता हूँ ॥२२॥ ___ अन्वयार्थ--जिसने रज को दूर कर दिया है, मोह को त्याग दिया है, ऐसे श्री वर्द्धमान स्वामी ने इस प्रकार कहा है । अतएव विशुद्ध શીતોષ્ણ, દંશમશક અને તૃણસ્મશ આદિ સ્પાને પણ તે સમભાવપૂર્વક સહન કરે છે. ૨૧
સઘળા સ્પર્શોને સહન કરનારને જ મુનિ કહેવાય છે, આ પ્રકારનું Yथन आगे युछे, ते सूत्र॥२ हये घट ४२ छ-'इच्चेवमाहु' त्याह
शहा-'धूयरए-तरजाः' ऐसी स नित २४ अर्थात भान १२ ४ा छ तभ 'धूयमोहे-धूतमोहः' स्त्री स नित अथवा द्वेष नित मोइन त्या ? छे से भिक्खू-स भिक्षुः' ते साधु छ. 'से वीरे-सः वीरः' ते वीर प्रभुमे 'इच्वेवमाहु-इत्येवमाहुः' म°४ प्रमाणे धुं छे. 'तम्हातस्मात ते ४२९थी 'अज्झत्थविसुद्धे-अध्यात्मविशुद्धः' नि थिणा अन 'मुविमुक्के-सुविमुक्तः' स्त्री ससाथी हित मेवा ते साधु 'आमोक्खाए-आमोमाय' भाक्षप्राति पय 'परिव्वएज्जासि-परिव्रजेत्' सयमना मनुनमा प्र. तिम २३ तिबेमि-इति ब्रवीमि से प्रभारी छु ॥२२॥
જેણે કર્મરજને દૂર કરી નાખી છે, જેમણે મેહને ત્યાગ કર્યો છે, એવા વીતરાગ શ્રી વર્ધમાન સ્વામીએ આ પ્રમાણે કહ્યું છે. તેથી વિશુદ્ધ
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨