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सूत्रकृतागसूत्रे
अन्वयार्थ :- ( एवं ) एवम् (बहुहिं) बहुभिः ( कयपुष्यं) कृतपूर्वम् - पूर्व कृतम्, (जे) ये पुरुषाः (भोगत्थाए) भोगार्थाय (अभियावन्ना) अभ्यापन्नाः- सावद्यकार्ये परायणा: (से) स: (दासे मिह व) दासो मृग इव (पैसे वा) प्रेष्य इव (पशुभूते ब) पशुभूत इव - पशुसमान: (ण वा केइ न वा कश्चित् सर्वाधमः स इत्यर्थः ॥ १८ ॥
टीका - एवमित्यादि । एवं' एवम् पुत्रशेषलकलनपालनादिकार्य 'बहुहिं' बहुभिरनेकैः पुरुषैः संसारासक्तान्तः करणैः 'कपुच्चे' कृतपूर्वम् - पूर्वस्मिन् काले दिखलाते हैं एवं बहुहिं'
शब्दार्थ -- ' एवं - एवम्' इसी प्रकार 'बहूहि बहुमि' बहुत लोगों ने 'कपुच्चे - कृतपूर्वम्' पहले किया है 'जे थे' जो पुरुष 'भोगत्था ए-भोगाaft' भोग के लिये 'अभियावन्ना-अभ्यापन्नाः' सावद्य कार्यों में आसक्त थे जो रागांध होते हैं । 'से-सः' वे 'दासे मि३ ब - दास दासो मृग इव' दास मृग और 'पेसे वो प्रेष्य इव' प्रेष्य के जैसा 'पसुभूतेव - पशुमूत इव' और पशु के तुल्य है अथवा 'ण वा केइ न वा कश्चित्' वे कुछ भी नहीं हैं अर्थात् सर्वाधम हैं ॥१८॥
अन्वयार्थ - - ऐसा बहुतों ने पहले किया है । जो पुरुष भोगों के लिए सावध कर्मों में तत्पर हैं, वे दास और मृग के समान हैं. नौकर के समान हैं पशु के समान हैं। उनसे अधिक अधम अन्य कोई नहीं है ॥१८॥ टीकार्थ- जिनका चित्त संसार में आसक्त है ऐसे अनेक पुरुषों ने पूर्वोक्त को लालन पालन आदि कार्य पहले भी किये हैं। कई वर्त्तमानकाल छे - " एवं बहुईि' इत्याहि
पुत्र
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'वहुहिं - बहुभिः' धारा बो
शब्दार्थं— 'एवं-एवम् मे प्रभा 'कयपुत्र - कृतपूर्वम्' पहेलां यु' थे. 'जे ये' के पुरुष 'भोगत्थाए - भोगार्थाय ' लोगों भाटे 'अभियावन्ना-अभ्यापन्नाः ' सावध मां आसक्त होय छे, तेसो भछे ने रागांध होय छे, 'से- सः' तेथे 'दासे मिइव - दासमृगावित्र' (स भृग भने 'वेसे वा प्रेष्य इव' अप्यनी प्रेम 'पसुभूतेव-पशुभूत इव' पशुनी समान छे. अथवा 'ण वा केई - नवा कश्चित् ' तेथेो પણ નથી અર્થાત્ સથી અધમ જ છે. ૫૧૮૫
કા
સૂત્રા—એવા અધમમાં અધમ કૃત્યે સ્રીને વશવર્તી અનેલા અનેક પુરુષોએ પહેલાં કર્યા છે. જે લેાકા ભેગાની અભિલાષાથી પ્રેરાઈને સાધ કર્મોમાં પ્રવૃત્ત હાય છે, જે રાગાંધ હોય છે, તેએ દાસ અને મૃગના સમાન છે. તેમને નાકર અને પશુસમાન કહી શકાય છે. તેમના કરતાં અધિક અધમ ખીજો કાઇ હાઇ શકે જ નહી ।।૧૮।।
ટીકા”—જેમનુ ચિત્ત સંસારમાં આસક્ત હાય છે એવા પુરુષાએ પુત્રનું લાલનપાલન આદિ પૂર્વોક્ત કાર્યો કર્યાં છે, વત માનમાં કરે છે અને ભવિષ્યમાં
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨