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________________ ३१२ सूत्रकृतागसूत्र ___ अन्वयार्थ:-(राओ घि) रात्रावपि (उडिया संता) उस्थिताः सन्तः (धाई या) धात्री इस धात्रीवत् (दारगं) दारकं -पुत्र रुदन्तं (संठयंति) संस्थापयन्ति, ते स्त्रीवशीभूताः (सुहिरामणा वि ते संपा) सुहीमन सोऽपि सन्तः लज्जालबोपि ते लज्जां विहाय (हंसा वा) हंसा रजका इच (वत्यधोवा) वस्त्रधावका:-स्त्रीपुत्रयोः (हवं ति) भवन्तीति ॥१७॥ टीका--'राओ वि' रात्रावपि 'उद्विया' उत्थिताः सन्तः 'धाई वा' धात्रीवत् , रुदन्तम् 'दारगं' दारकं-पुत्रं 'संठवंति' संस्थापयन्ति मधुरालापैः क्रीडयन्ति । 'सुहीरामणा वि ते संता' ते सुहीमनमोऽपि सन्तः लज्जासंपन्ना या अपि ___ शब्दार्थ--'राओवि-रात्रावपि रात में भी 'उटिया संता-उत्थिताः सन्नः उठकर 'धाई वा-धात्री इच' धाई के जैसे 'दारगं-दारकं. बालक को संठयति-संस्थापयन्ति' गोद में लेते हैं 'सुहिरामणा वि ते संता सुहीमनसोऽपि ते सन्ता' चे अत्यन्त मनमें लज्जाशील होते हुए भी 'हंसा वा-हंसा इव' धोबी के समान 'वस्थधोवा-वस्त्रधाचकाः' स्त्री और अपने संतान का वस्त्र धोने वाला 'हयंति-भवन्ति' हो जाते हैं ॥१७॥ अन्वयार्थ--कोई कोई रात्रि में भी उठकर धाय के समान पुत्र को रखते हैं । ये लजालु होते हुए भी घोषियों के समान स्त्री और पुत्र के वस्त्रों को धोते हैं ॥१७॥ दीकार्थ--जो स्त्रीवशंगत होते हैं वे रात्रि में भी उठकर रोते हुए पुत्र को धाय के समान रखते हैं अर्थात मीठी मीठी बातें कहकर उसे रमाते हैं। वे लज्जाशील होते हुए भी लज्जाहीन होकर स्त्री के अधीन साथ-'रामो वि-रात्राव' ५ 'उट्ठिया संता-उत्थिताः सन्तः' ही 'धाई वा-धात्री इत्र' पानी रेभ. 'दारंग-दारकम्' माने 'संठवंतिसंस्थापयन्ति' मेणाम दे छे. 'सुहिरामणा वि ते संता-सुहीमनमोऽपि ते सन्तः' ते सत्यत २२मान ५५ 'हंसा या-हंसा इ' धामीनी भा 'वत्थधोवापलधारकाः' श्री मने पाताना सतानना ५२ धावावाणी हवंति-भवन्ति' થાય છે. જે ૧૭ સુવાર્થ-સ્ત્રીને અધીન બનેલા કઈ કઈ પુરુષોને રાત્રે પણ ધાત્રી (ધાવમાતા) ની જેમ પુત્રની સંભાળ લેવી પડે છે. તેઓ લજજાશીલ હોવા છતાં પણ ધાબીની જેમ સ્ત્રી અને પુત્રનાં કપડાં ધોવે છે. જેના ટીકાઈ—જે પુરુષ સ્ત્રીના પૂરે પૂરા કાબૂમાં આવી ગયા હોય છે, તેમણે રાત્રે રડતાં બાળકની સંભાળ રાખવી પડે છે-તેમને તેડીને, હીંચોળીને અથવા શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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