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सार्थबोधिनी टीका प्र. थु. अ. ३ उ. १ भिक्षापरीषह निरूपणम्
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अन्वयार्थ :- ( दत्ते वण) दत्तेपणा अन्यप्रदत्तवस्तुनोऽन्वेषणम् (दुक्बा) दुःखम् (सया) सदा जीवनपर्यन्तं साधूनां भवति तथा (जायणा) यांचा (दुष्पणोलिया) दुष्प्रगोया याञ्चापरीवः असत्वेन दुःखेन प्रणोद्यते सह्यते ( पुढो जणा) पृथगूजनाः = कृतपुरुषाः ( इच्चाहंस) इत्येवमाहुः = कथयति, (कम्नत्ता) कर्मार्त्ताः स्वकृतपूर्वकर्मणः फलभोक्तारः (दुन्नगा वे) दुर्भगा =भाग्यहीना इमे इति ||६||
टीका - - ' दत्तेसणा' दतैषणा 'दुक्खा' दुःखननिका 'सपा' सदा आजीवनं साधूनां भवति 'जायणा' याचा 'दुपणोल्लिया' दुष्प्रणोद्या = दुःखेन सोढव्या अब सूत्रकार भिक्षा परीषह के विषय में कथन करते हैं'सया दसणा' इत्यादि ।
शब्दार्थ- 'दसणा- दत्तैषणा' अन्य के द्वारा दी गई वस्तु को ही अन्वेषण करना 'दुक्खा - दुःखम् ' यह दुःख 'सया - सदा' जीवन पर्यन्त साधु को रहता है 'जायणा-यांचा' भिक्षाकी याचना करने का कष्ट 'दुष्पणोल्लिया - दुष्प्रणोद्या' असा होता है 'पुढो जणा-पृथक् जनाः ' प्राकृतपुरुष अर्थात् साधारण लोक 'इच्चाहंसु एवमाहुः' ऐसा कहते हैं कि 'कम्मा कर्मार्त्ताः' ये लोक अपने पूर्वकृन पापकर्म का फल भोग रहे हैं 'दुभगाचेव - दुर्भगाश्चैव' तथा ये लोग भाग्यहीन हैं ॥ ६ ॥
अन्वयार्थ साधुओं को दतेपणा का अर्थात् दूसरो के द्वारा प्रदत्त वस्तु को ही ग्रहण करने का दुःख सदैव सहन करना पडता है । याचना परीषह भी दुस्सह होता है । साधारण जन साधुओं को देख कर कहते हैं, ये अपने कर्मों से पीडित हैं भाग्य हीन है' || ६ ||
टीकार्थ-साधुओं को जीवनपर्यन्त दत्तेषणा का दुःख भोगना पडता है अर्थात् अदसादान के कारण सदैव दूसरों की दी हुई वस्तु से ही भवन पर्यंत साधुने र छे. 'जायणा-यांचा' लिक्षानी याथना ४२वानुंष्ट दुपणोल्लिया - दुष्प्रणोद्या' असा थाय छे. 'पुढो जणा - पृथक् जनाः' आत ५३ष अर्थात् साधारण बोर्ड 'इच्चाहमु - पत्रमाहु:' से 'कम्मत्ता- कर्मार्त्ताः' आबो पोताना पूर्वईत पाय इ लोगवी रह्या छे. 'दुब्भगाचेव - दुर्भगाश्चैव' तथा मा बोडी लाग्यहीन छे. ॥६॥
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સૂત્રા—સાધુએએ અન્યના દ્વારા પ્રદત્ત વસ્તુને ગ્રહણ કરવાનુ... દુઃખ સદા સહન કરવું પડે છે, તે કારણે યાચનાપરીષહ પણ દુસ્સડું ગણાય છે. સામાન્ય લાકે તે સાધુઓને જોઇને કહે છે-
माते तेमनां भेथी पीडित छे, लाग्यहीन छे. सू. ६॥ ટીકા”—સાધુએ જીવનપર્યં‘ત દનૈષણાનું દુઃખ સહન કરવું પડે છે, કારણ કે તે અદત્તાદાનના ત્યાગી હોવાને કારણે તેમને અન્યના દ્વારા
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨