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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. ४ स्खलितस्य साधोरुपदेशः १६९ ___ अन्वयार्थः-(जहा) यथा (मंधादए नाम) मन्धादनो नाम-मेषः (थिमिय) स्तिमितमनालोड्यमानमेव (दगं) उदकम् (भुंनइ) भुक्ते पिबति तत्रान्येषां जीवानामुपमर्दनाभावान्न दोपः (एवं) एवं तथैव (विनवणित्यी मु) विज्ञापनीस्त्रीषु (तत्थ) तत्र-ताशसमागमे (दोसो को सिया) दोषः कुतः स्यात् नैव कोऽपि दोष इति ॥११॥ ___टीका- स्यादपि मैथुने दोषो यदि कश्चित् तत्र पीडादिकमुत्पद्येत, न तु तथा प्रकृतेऽस्तीति दृष्टान्तद्वारा पुनदर्शयति-'जहा' यथा-'मंधादणे नाम' पीता है उसमें अन्यजीवों के उपमर्दन का अभाव होने से दोष नहीं है एवं-एवम्' इसी प्रकार विन्नविणिस्थीसु-विज्ञापनीस्त्रीषु' समागम की प्रार्थना करनेवाली स्त्रीके साथ समागम करने से 'तस्थ-तत्र' इसमें 'दोसो को सिया-दोषः कुतः स्यात्' दोष कैसे हो सकता है ? अर्थात् कोई दोष नहीं है ॥११॥ __ अन्वयार्थ-जैसे मेढा विलोडे विना ही जल को पीता है, इसमें जीवों का उपमर्दन न होने से दोष नहीं है, उसी प्रकार संभोग की प्रार्थनाकरनेवाली स्त्रीके साथ समागम करने से भी कैसे दोष हो सकता है ? अर्थात् कोई दोष नहीं है ॥११॥ टीकार्थ-यदि किसी जीव को पीडा उत्पन्न होती तो मैथुन सेवन में दोष माना जा सकता था। मगर किसी की पीडा तो होती नहीं हैं । यही बात दृष्टान्त के द्वारा प्रदर्शित करते हैं-जैसे मेष मेढा हिलाये तमा अन्य मीon ना ५मनी ममा पाथी दोष नथी. 'एवं-एवम्' मा ॥'विन्नविणित्थीसु-विज्ञापनीस्त्रीषु' समाजमनी प्रार्थना ४२वापानी सीना साथे सभागम ४२३॥थी 'तत्थ-तत्र' मामा ‘दोसो को सिया-दोषः कुतः स्यात्' ५ वी शत ५४ छ ? अर्थात् १७५५ होष नथी. ॥११॥ સૂત્રાર્થ જેવી રીતે ઘેટું પાણીને ડબોળ્યા વિના જ તેનું પાન કરે છે, અને તે પ્રકારે તેના દ્વારા જીવોનું ઉપમર્દન ન થવાને કારણે તેને દોષ લાગતું નથી, એ જ પ્રમાણે સંભેગની પ્રાર્થના કરનારી સ્ત્રી સાથે સંભોગ કરવાથી કેવી રીતે દોષ લાગી શકે? એટલે કે એમાં કઈ દેષ સંભવી શકતે જ નથી ! ૧૧ ટીકાઈ–મૈથુન સેવન કરવાથી જે કઈ જીવને પીડા ઉત્પન્ન થતી હોય, તે તે તેને દેષ માની શકાય. પરંતુ તેના દ્વારા સ્ત્રી કે પુરુષને પીડા ઉત્પન્ન થતી નથી. ઊલટાં સુખ પ્રાપ્ત થાય છે. તે મિથુન સેવનમાં શા માટે દોષ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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