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________________ २४४ सूत्रकृताङ्गसू अन्वयार्थः पूर्ववदेव | व्याख्या स्पष्टा, नवरं ते वादिनः संसारपारगाः संसारस्य - नरामरनारकतिर्यक् रूपस्य पारगाः = पारगामिनो न भवन्ति ॥२१॥ पुनरप्याह - ' तेणावि' इत्यादि । मूलम् - तणाव संधि णचाणं न ते धम्मविओ जणाः । जे ते उ वाइणो एवं न ते गव्भस्स पारगा ॥२२॥ छाया तेनापि संधि ज्ञात्वा न ते धर्मविदो जनाः । ये ते तु वादिन एवं न ते गर्भस्य पारगा ॥ २२ ॥ वे लोक धर्म को जानने वाले नहीं हैं 'जे ते उ एवं वाइणो ये ते तु एवं वादिनः ' जो पूर्वोक्त सिद्धांतका प्रतिपादन करते हैं 'न ते संसार पारगा - ते संसार पारगाः न' वे संसार को पार नहीं कर सकते हैं ||२१|| -: अन्वयार्थः - 44 इस गाथा का अर्थ पूर्ववत् ही है । पिछली गाथा में “ ओहंतराऽऽहिया " पाठ था, उसके स्थान पर यहाँ " संसारपारगा " पाठ है । अतः इसका अर्थ इस प्रकार है वे वादी मनुष्य देव नारक और तिर्यंचगतिरूप संसार से पारगामी नहीं होते हैं । इसकी व्याख्या स्पष्ट है। शेष सब पूर्ववत् समझना चाहिए ||२१|| फिर कहते हैं - " ते णावि " इत्यादि । शब्दार्थ - 'ते - ते' वे 'संधि - संधिम्' सन्धिको 'णावि णच्चा - नापि ज्ञात्वा' नहीं जानकर क्रियामें प्रवृत्त हैं 'ते जणा ते जनाः' वे लोग 'धम्मविओ-धर्मविदः' धर्म के तेवा सोडो धर्मना रहस्य ने भागवावाणा नथी. 'जे ते उ एवं वाइणो-ये ते तु वं वादिनः । पूर्वोत सिद्धान्तनुं प्रतिपादन उरे छे, 'न ते संसारपारगा-ते संसारपारगाः न' तेथे संसारने पार उरी शस्ता नथी ॥२१॥ -मन्वयार्थ - या गाथाना अर्थ पूर्ववत् ४ छे भागली गाथामा 'अहं' तराऽऽहिया' पाठ इतो, तेनी भय्या या गाथामा “संसारपारगा" पाठ छे. "संसारपारगा" इत्यादि गाथानो અર્થ આ પ્રમાણે છે. તે અન્ય મતવાદી લોકો મનુષ્ય, તિય``ચ નારક અને દેવ, આ ચાર ગતિ રૂપ સંસારને પાર કરીને મેક્ષની પ્રાપ્તિ કરી શકતા નથી. આ ગાથાને અથ સ્પષ્ટ છે. બાકીનું બધું કથન આગલી ગાથામાં કહ્યા પ્રમાણે જ સમજવુ' ! ગાથા ૨૧ ॥ पणी सूत्रअर हे छेडे - " तेणावि" प्रत्याहि शब्दार्थ - 'ते-ते' तेथे 'संधि - संधिम्' संधीने 'णावि णच्चा - नापि ज्ञात्वा' भएया विनागडियामां प्रवृत्त थाय छे 'ते जणा ते जनाः' ते बोझे 'धम्मविओ-धर्म' શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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