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________________ समयार्थ बोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १ चार्वाकादिबौद्धान्तवादीनामकलवादित्वम् २४५ अन्वयार्थः पूर्ववदेव । व्याख्या निगदसिद्धा, नवरं-ते वादिनः गर्भस्यगागमनस्य पारगा न भवन्ति गर्भाद् गर्भान्तरपरिभ्रमणं तेषां न नश्यति।।२२।। पुनरप्याह-'तेणा वि संधि' इत्यादि । मूलम्तेणा वि संधि णच्चाणं न ते धम्मविओ जणा । जे ते उ वाइणो एवं न ते जम्मस्स पारगा ॥२३॥ छायातेनापि संधि ज्ञात्वा न ते धर्मविदो जनाः । ये ते तु वादिन एवं न ते जन्मनः पारगाः ॥२३॥ ज्ञाता 'न-न' नहीं हैं 'जे-ये' जो 'ते उ-ते तु' वे एवं एवम्' ऐसे 'वाइणो-वादिनः' वादी हैं 'ते-ते' वे 'नगब्भस्स पारगा-गर्भस्य पारणाः न' गर्भको पार नहीं कर सकते हैं ॥२२॥ -अन्वयार्थःइस गाथा का अर्थ भी पूर्ववत् ही है। व्याख्या भी स्पष्ट है। विशेष इतना समझना कि-वे वादी गर्भ के पारगामी नहीं होते अर्थात् उनका एक गर्भ से दूसरे गर्भ में परिभ्रमण करना बंद नहीं होता है ॥२२॥ फिर कहते हैं-" ते णावि" इत्यादि । शब्दार्थ-'ते-ते वे संधि-सन्धिम्' सन्धिको ‘णावि जच्चा-नापि ज्ञात्वा' नहीं जानकर क्रियामें प्रवृत्त होते हैं 'ते जणा धम्मपिओ न-ते जनाः धर्मविदः न' वे लोग विदः' भने तना। 'न-न' नथी. 'जे-येरेसा 'एय-एवम्' से शत ना 'वाइणोवादिनः' वाहीमा छ. 'तेउ-ते तु तेसो 'न गम्भस्स पारगा-गर्भस्य पारगान' ગર્ભને પાર કરી શક્તા નથી. ૨૨ -मक्याथઆ ગાથાને અર્થ પણ પૂર્વવત્ જ છે. વ્યાખ્યા પણ સ્પષ્ટ છે. અહીં એટલું જ વિશેષ કથન સમજવાનું છે કે તે અન્યતીર્થિકે ગર્ભના પારગામી થતા નથી. એટલે કે તેમનું એક ગર્ભમાંથી બીજા ગર્ભમાં પરિભ્રમણ કરવાનું બંધ પડતું નથી. ગાથા રર qणी सूत्रा२ ४ छे -"तेणावि" त्याहि हाथ---ते-ते' मा 'सधि-सन्धिम्' सधीन 'णाविणच्चा-नापि भास्या' या विना लियाम प्रवृत्ति ४२ छ, 'ते जणा धम्मविओ न-ते जनाः धर्म विदः ने શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર: ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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