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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू. २ अ. ११ शब्दासक्तिनिषेधः वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा वा भिक्षुकी 'अहावेगइयाई सद्दाई सुणेई' यथा वा एककान् शब्दान् शृणोति 'तं जहा-महिस जुद्वाणि वा जाप कविंजलजुद्धाणि वा' तद्यथामहिषयुद्धानि वा-महिषयुद्धोद्भवान् यावत् -वृषमयुद्धोद्भवान् वा अश्वयुद्धोद्भवान् वा हस्तियुद्धोद्भवान् वा वानरयुद्धोद्भवान् वा लावकयुद्धोद्भवान् वा वर्तकयुद्धोद्भवान् वा कपिञ्जलपक्षिविशेषयुद्धोद्भवान् वा 'अन्नयराई तहप्पगाराई' अन्यतरान् वा-तदन्यान् वा किसी भी दूसरे स्थानों में जाने के लिये मन में संकल्प या विचार नहीं करना चाहिये क्यों कि इस प्रकार के महिष वगैरह पशु और लावक बटेर वगैरह पक्षी को बहने के स्थानों में उत्पन्न शब्दों को सुनने के लिये जाने से संयम की विराधना होगी इसलिये संयम पालन करने वाले संयमशील मुनि महात्माओं को इस प्रकार के हाथी वगैरह पशुओं को और कपिञ्जल वगैरह पक्षियों को बाहने के स्थानों में उत्पन्न शब्दों को सुनने के लिये कहीं भी दूसरी जगह नहीं जाना चाहिये । अब फिर भी दूसरे प्रकार के शब्दों को नहीं सुनना चाहिये यह बतलाते हैं ‘से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, अहावेगइयाई सदाहं सुणेइ' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुको साध्वी यदि वक्ष्यमाण रूप से एकैक शब्दों को सुने 'तं जहा महिसजुद्वाणि था' जैसे कि महिषी के युद्ध में उत्पन्न शब्दों को या 'जाव कबिजल जुद्धाणि वा' यावतू वृषभ बैलों को युद्ध में उत्पन्न शब्दों को या अश्वों-घोडों के युद्ध में उत्पन्न शब्दों को या हाथी के युद्ध में उत्पन्न शब्दों को या घानरों के युद्ध में उत्पन्न शब्दो को या लायकपक्षियों के युद्ध में उत्पन्न शब्दों को या वर्तक अर्थात् बटेर के युद्ध में उत्पन्न शब्दों को या कपिञ्जल આવા ના ભેંસ વિગેરે પશુ અને લાલ બતક વિગેરે પક્ષીને બાંધવાના સ્થાનમાં ઉત્પન્ન થતા શબ્દને સાંભળવા માટે જવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. તેથી સંયમનું પાલન કરવા વાળા મુનિએ આ પ્રકારના હાથી વિગેરે પશુઓને અને કપિંજલ વિગેરે પક્ષિઓને બાંધવાના સ્થાનમાં ઉત્પન્ન થતા શબ્દને સાંભળવા માટે કઈ પણ અન્ય સ્થળે જવું નહીં
वे प्रशन्तरथी शान न सम विष ४थन ३२ छ.-'से भिक्ख वा भिक्खणी वा' ते पूरित सयभशा साधु भने साथी 'अहावेगइयाई सहाई सुणेइ' ने सेवा शतनामे से होने सालणे 'तं जहा' 43-'महिसजुद्धाणि वा जाव' पाडायोनी લડાઈમાં ઉત્પન્ન થનારા શબને અથવા યાવત્ બળદની લડાઈમાં ઉત્પન્ન થતા શબ્દને અથવા ઘેડાઓના યુદ્ધમાં ઉત્પન્ન થતા શબ્દને કે હાથીઓની લડાઈમાં થનારા શબ્દોને અથવા વાનરોની લડાઈમાં થનારા શબ્દને અથવા લાવક પક્ષીની લડાઈમાં થનારા શબ્દો २ मथवा सतनी सभा ५-1 यता शहाने अथवा 'कबिंजलजुद्धाणि वा पिस
श्री सागसूत्र :४