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आचारांगसूत्र तथाप्रकारान्-महिषादियुद्धोद्भवशब्दसदृशान् 'विरूवरूवाई सदाई विरूपरूपान्-नानाविधान् शब्दान् 'कण्णसोयणपडियाए' कर्णश्रवणप्रतिज्ञया-श्रोतुमिच्छया 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' नो अभिसन्धारयेद्गमनाय-गन्तुं मनसि संकल्पं न कुर्यात् ‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'अहावेगइयाइं सदाइं सुणेइ' यथा वा एककान् शब्दान् शृणोति'तं जहा-जूहियठाणाणि वा हयजूहियठाणाणि वा' यूथकस्थानानि वा-यूथस्थानोदभवान् वा वरवधूप्रभतिद्वन्द्वरूप यूथसम्बन्धिवेदिसंभवान् शब्दानित्यर्थः वरवधूवर्णनं शृणुयात् हयनाम के पक्षियों के युद्ध में उत्पन्न शब्दों को या 'अन्नघराई तहप्पगराई' इसी तरह के किसी भी अन्य पशु पक्षियों के युद्ध में उत्पन्न 'विरूवरूवाइं सहाई नाना प्रकार के शब्दों को 'कण्ण सोयणपडियाए' सुनने के लिये जैन मुनि महात्माओं को 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' उपाश्रय से बाहर किसी भी दसरे स्थान में नहीं जाना चाहिये क्योंकि इस प्रकार के भैस बैल घोडे के या हाथी वगैरह के युद्धों में उत्पन्न शब्दों को सुनने से रौद्र भावना उत्पन्न होती है और रौद्र भावनाओं से जीवहिंसा की भावना पैदा होती है जिस से संयम की विराधना होगी इसलिये संयम पालन करनेवाले संयमशील साधु और साध्वी को इस प्रकार के पशु पक्षियों के युद्ध से उत्पन्न शब्दों को नहीं सुनना चाहिये यह वीतराग प्रभु महावीर स्वामीने कहा हैं।
अब अन्त में भी अन्य प्रकार के शब्दों को नहीं सुनना चाहिये यह बतलाते हैं-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, अहावेगइयाई सद्दाई लुणेइ'-वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि वक्ष्यमाण रूप से एकैक शब्दों को सुने 'तं जहा जूहिय ठाणाणि वा' जैसे कि यूथके शब्दों को अर्थात् वरवध नामना पक्षियोनी adhiपन्न यना२१ शहन तमाम 'अन्नयराइ तहप्पगाराई विरूवरूवाई सदाई' के प्रमाणे १७५९ मी. पशुपक्षियाना युद्धमा थन।२ ने 'कण्णसोयणपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गणाए' अनाथी सलवानी छायी साधु સાવીએ ઉપાશ્રયની બહાર અન્ય સ્થાનમાં જવાને મનમાં સંકલ્પ કે વિચાર પણ કરે નહીં. કેમકે-આ પ્રકારના ભેંસ કે બળદ, ઘોડા હાથી વિગેરેની લડાઈમાં થતા શબ્દને સાંભળવાથી રૌદ્રભાવ ઉત્પન્ન થાય છે, અને રૌદ્રભાવ થવાથી જીવહિંસાની ભાવના ઉત્પન્ન થાય છે, તેથી સંયમની વિરાધના થાય છે. તેથી સંયમનું પાલન કરવાવાળા સાધુ અને સાધ્વીએ આવા પ્રકારના પશુ પક્ષિયેની લડાઈમાં થનારા શબ્દોને સાંભળવા નહીં. આ પ્રમાણે વીતરાગ પ્રભુશ્રી મહાવીર સ્વામીએ કહ્યું છે,
व अन्य ४२॥ शहाने न सimal विष थन ४२ छे.-'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' ते पति सयमा साधु भने साथी 'अहावेगइयाई सदाइ सुणेई' से वक्ष्यमा २ से होने समिणे 'तं जहा' २५॥ 3-'जूहियठाणाणि वा' १२वडू
श्री सागसूत्र :४