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________________ ९०८ जहा - महिसकरणद्वाणाणि वा' तद्यथा - महिषकरणस्थानानि वा-महिषबन्धनस्थानोद्भवान् 'वसभकरण द्वाणाणि वा' वृष प्रकरणस्थानानि वा- वृष-वलीवर्द बन्धनस्थानोद्भवान् वा 'अस्सकरणद्वाणाणि वा' अश्वकरणस्थानानि वा - अश्वबन्धनस्थानोद्भवान् 'हत्थिकरणद्वाणाणि वा' हस्तिकरणस्थानानि वा - गजबन्धनस्थानोद्भवान् 'जाव कविजलकरणद्वाणाणि वा' यावत्मर्कटबन्धनस्थानोद्भवान् वा कावक वर्तकवन्धनस्थानोद्भवान् कपिञ्जकरणस्थानानि वाकपिञ्जलनामकपक्षिविशेषबन्धनस्थोद्भवान् 'अन्नयराई वा तप्पगाराई' अन्यतरान् वा तद. न्यान् वा तथाप्रकारान् - महिषप्रभृतिबन्धनस्थानोद्भव शब्दसदृशान् 'विरूवरूवाई सद्दाई' विरूपरूपान- नानाविधान शब्दान 'कण्ण सोयणपडियाए' कर्णश्रवणप्रतिज्ञया श्रोतुम् 'नो अभिसंघारिज्जा गमणाए' नो अभिसंधारयेद् गमनाय - गन्तुं मनसि संकल्पं न कुर्यात् 'से भिक्खू यह बतलाते हैं-' से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, अहावेगइयाई सद्दाणि सुणेइ' वह पूर्वोक्त संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि वक्ष्यमाणरूपवाले एकैक शब्दों को सुने- 'तं जहा' जैसे कि 'महिसकरणद्वाणाणि वा' भैंस के बांधने के स्थानों में उत्पन्न शब्दों को या 'वसभ करणहाणाणि वा' वृषभ बैल के बांधने के स्थानों में उत्पन्न शब्दों को था 'अस्सकरणद्वाणाणि वा' अश्व-घोडों को बांधने के स्थानों में उत्पन्न शब्दों को या 'हत्थिकरणद्वाणाणि वा हाथी को बांधने के स्थानों में उत्पन्न शब्दों को या 'जाव कविजलकरणहुणाणि वा' यावत् मर्कटबंदरों को बांधने के स्थानों में उत्पन्न शब्दों को या लावक छोटी छोटी सी चिरै को बांधने के स्थानों में उत्पन्न शब्दों का या वर्तक अर्थात् बढेर को बांधने के स्थानों में उत्पन्न शब्दों को या 'अन्नयराई वा तपगाराई' दूसरे भी इसी प्रकार के - 'विरूवरूवाई सद्दाई' पशु पक्षी विशेष को बांधने के स्थानों में उत्पन्न शब्दों को 'कण्णसोयणपडियाए' कानों से सुनने की इच्छा से संयमशील साधु और साध्वी को 'नो अभिसंधारिजा गमणाएं' उपाश्रय से बाहर 'अहावेगइयाई' सहाई सुगेइ' ले वक्ष्यमाणु प्रहारना ये ये होने सांगणे 'तं जहा ' नेवा - 'महिसकरणट्ठाणाणि वा' ले सोने अथवा 'वसभकरण द्वाणाणि वा' जसहोने जांधवाना स्थानामा उत्पन्न थता होने अथवा 'अस्सकरणद्वाणाणि वा' घोडा. वाना स्थानामा थता होने अथवा 'हत्थिकरणद्वाणाणि वा' अथवा 'जाव कविजलकरण द्वाणाणि वा' यावत् वहराओने गांधवाना स्थानामा शहीने अथवा सावस-मतउने गांधવાના સ્થાનમાં થતા શબ્દને અથવા કષિજલ નામના પક્ષિ વિશેષને બાંધવાના સ્થાનામાં उत्पन्न थता शाम्होने 'अन्नयराई' तहपगाराई विरुत्ररूवाई सदाई' मील पशु भावा अारना पशुपक्षियने मांधवाना स्थानामा उत्पन्न थता होने 'कण्णसोयणपडियाए नो अभिसंधारिज्ज गमणाएं अनाथी सांभवानी इच्छाथी साधु साध्वीये उपाश्रयनी महार કોઈ પણ અન્ય સ્થાનામાં જવા માટે મનમાં સ'કલ્પ કે વિચાર પણ કરવે। નહી' કેમકે आचारांगसूत्रे શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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