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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू. २ अ. ११ शब्दाशक्तिनिषेधः ९०७ शब्दान् शृणोति 'तं जहा -तियाणि वा चउकाणि वा' त्रिकाणि वा-त्रिपथसमुद्भूतान्, चतुकाणि वा-चतुष्पथसमुद्भूतान् वा 'चचराणि वा चउम्मुहाणि वा' चत्वराणि वा-चत्वरोद्भवान् , चतुर्मुखानि वा- चतुर्मुखोदभवान् वा 'अन्नयराई तहप्पगाराई' अन्यतरान् वा-तदन्यान् वा तथाप्रकारान्-त्रिपथप्रभृतिशब्दसदृशान् ‘विरूवरूबाई सद्दाई' विरूपरूपान्-अनेकविधान् शब्दान् 'कण्णसोयणपडियाए' कर्णश्रवणप्रतिज्ञया-श्रोतुं 'नो अभिसंधा रज्जा गमणाए' नो अभिसंधारयेद गमनाय-गन्तुं मनसि संकल्पं न कुर्यात्, ‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी का 'अहावेगइयाई सदाई सुणेइ' यथा बा एककान् शब्दान् शृणोति 'तं चाहिये यह बतलाते हैं-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा-अहावेगइयाइं सदाई सुणेई'-वह पूर्वोक्त भिक्षु-संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि वक्ष्यमाण रूप वाले एकैक शब्दों को सुने-'तं जहा तियाणि वा'-जैसे कि त्रिक अर्थात त्रिपथ तेवट्टी में उत्पन्न शब्दों को या-'चउक्काणि वा' या चतुष्क अर्थात् चतु: पथ-चौवट्टी पर उत्पन्न शब्दों को या-'चच्चराणि वा' चत्वर अर्थात् चौराहा पर उत्पन्न शब्दों को या 'अन्नयराइं तहप्पगाराइं विख्वरूवाई सद्दाई' दूसरे किसी भी इसी प्रकार के नानातरह के शब्दों को 'कण्णसोयणपडियाए' कानों से सुनने की इच्छा से उपाश्रय से बाहर 'नो अभिसंधारिज्जा गमणाए किसी भी दूसरे स्थान में जाने के लिये मनमें संकल्प या विचार भी नहीं करें क्योंकि इस तरह के त्रिपथ चतुष्पथ वगैरह स्थानों में उत्पन्न शब्दों को सुनने से आसक्ति वढ जाने की संभावना से संयमकी विराधना होगी इसलिये संयम पालन करने वाले साधु को और साध्वी को इस प्रकार के शब्दों को नहीं सुनना चाहिये 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' पूर्वात सयमशील साधु सने साली 'अहावेगइयाई सदाई सुणेइ' ले १६यभार २॥ ४ मे महान साकणे 'तं जहा' २१॥ ४- 'तियाणि वा त्रय भागाणा २स्तामा था शहाने अथवा 'चउकाणि वा' यत्१२ या२ २२ता पाणा यामा ५-1 तथा शण्होने अथवा 'चच्चराणि वा' य१२ अर्थात् यो। ५२ ५-1 यता होने अथवा 'च उम्मुहाणि वा' यतुभुम मर्थात् यौटामा ५न्न थता होने मात! 'अन्नयराई तहप्पगाराइं विरूवरूपाइं सद्दाई' भी ५५४ मा २ना अने। १२नाण्होने 'कण्णसोयणपडियाए' नाथी समपानी छाथी पानी महार 0 પણ અન્ય સ્થાનમાં જવા માટે મનમાં સંકલ્પ કે વિચાર પણ કરે નહીં કેમકે-આવા પ્રકારના ત્રિમાર્ગ, ચતુર્માર્ગ વિગેરે સ્થાનમાં ઉત્પન્ન થતા શબ્દોને સાંભળવાથી આસક્તિ વધી જવાની સંભાવનાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. તેથી સંયમનું પાલન કરવાવાળા સધુ કે સાવીએ આવા પ્રકારના શબ્દોને સાંભળવા નહીં. હવે હાથી વિગેરેને બાંધવાના સ્થાનોમાં ઉત્પન્ન થતા શબ્દોને પણ ન સાંભળવા विष ४थन ४२ थे.'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पति सयमशील साधु भने साथी श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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