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आचारांगसूत्रे समुद्भवान् वा 'चरियाणि वा' चरिकाणि वा-प्राकारोद्भवान् 'दाराणि वा' द्वाराणि वाद्वारदेशोदभवान् 'गोपुराणि वा' गोपुराणि वा पुरद्वारोदभवान् वा 'अन्नयराइं तहप्पगाराई' अन्यतरान्-तदन्यान् वा तथाप्रकारान्-अट्टादिकादिसमुद्भूतशब्दसदृशान् 'विरूवरूवाई' विरूपरूपान् नानाविधान् सदाई शब्दान् 'कण्णसोयणपडियाए' कर्णश्रवणप्रतिज्ञया श्रोतुम् 'नो अभिसंधारिज्जा गमणाए' नो अभिसंधारयेद् गमनाय गन्तुं मनसि संकल्पं न कुर्यादिति 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षु भिक्षु की वा 'अहावेगइयाई सदाई' यथा वा एककान् या' चरिक अर्थात् प्राकार परकोटे में उत्पन्न शब्दों को या 'दाराणि वा' द्वारद्वारदेश में उत्पन्न शब्दों को या 'गोपुराणि वा' गोपुर-अर्थात् पुर के द्वार में उत्पन्न शब्दों को या 'अन्नयराइं तहप्पगाराई विख्वरूवाई इसी प्रकार के दसरे भी किसी स्थानों में उत्पन्न अनेक प्रकार के 'सद्दाणि कण्णसोयणपडियाए' शब्दों को कानों से सुनने की इच्छा से संयमशील साधु मुनि महात्माओं को और साध्वियों को 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' उपाश्रय से बाहर किसी भी दूसरे स्थान में जाने के लिये मन में संकल्प या विचार नहीं करना चाहिये क्यों कि इस प्रकार के शब्दों को सुनने से आसक्ति बढ जाने की संभावना से संयम में विराधना होगी, अर्थात् संयमपालन करने में अनेक तरह की विघ्न बाधा उपस्थित होने लगेगी, अतः संयमशील साधु और साध्वी इस प्रकार के आपण दुकान अटारी वगैरह में उत्पन्न शब्दों को सुनने के लिये उपाश्रय से बाहर कहीं भी जाने का मन में संकल्प भी नहीं करे क्यों कि इस से संयम पालन नहीं हो सकेगा ऐसा वीतरागमहावीर स्वामीने कहा है।
अब फिर भी प्रकारान्तर से अन्य प्रकार के शब्दों को भी नहीं सुनना मटारीमा थत होने अथवा 'चरियाणि वा' या२४ अर्थात् प्रा२ ७५२न। छोटमा यता Avडान अथवा 'दाराणि वा' दाहेश मा यताश होने अथवा 'गोपुराणि वा' गापुर मेरो , पुरना द्वारमा ५न्न यता होने 'अन्नयराई तहप्पगाराई विरूवरूबाई सदाणि' मावा प्रहारना भीग ५ स्थानमा उत्पन्न यता भने प्राश्ना शण्टोन 'कण्णसोयणपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए' माथी सांजवानी ४२छायी साधु , साध्वीये ઉપાશ્રયની બહાર કે ઈપણ અન્ય સ્થાનમાં જવા માટે મનમાં સંકલ્પ અથવા વિચાર પણ કર નહીં કેમકે આવા પ્રકારના શબ્દોને સાંભળવાથી આસક્તિ થવાની સંભાવનાથી સંયમની વિરાધના થવા સંભાવના છે. અર્થાત્ સંયમ પાલન કરવામાં અનેક પ્રકારના વિદન ઉપસ્થિત થાય માટે સાધુ કે સાર્વીએ આવા પ્રકારના દુકાન અટારી વિગેરેમાં થતા શબ્દોને સાંભળવા માટે ઉપાશ્રયની બહાર કેઈ પણ સ્થળે જવા મનમાં સંકલ્પ પણ કર નહીં કેમકે આમ કરવાથી સંયમ પાલન થઈ શકતું નથી આ પ્રમાણે વીતરાગ મહાવીર સ્વામીએ કહ્યું છે.
હવે પ્રકારાન્તરથી અન્ય પ્રકારના શબ્દો પણ ન સાંભળવા વિષે કથન કરે છે.
श्री आया। सूत्र : ४