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________________ मर्मप्रकाशिका टोका श्रुतस्कंध २ सू० २ अ. ११ शब्दसक्तिनिषेधः ९०३ याइं सहाई सुणेइ' यथा वा एककान् शब्दान् शृणोति 'तं जहा-गामाणि वा नगराणि वा' ग्रामान् वा-ग्रामोद्भवान् शब्दान, नगराणि वा-नगरोद्भवान् शब्दान् 'निगमाणि वा' निगमानि वा-बृहनगरोद्भवान् वा शब्दान 'रायहाणाणि वा' राजधान्यो वा-राजधानीसमुद्भवान् शब्दान् 'आसमपट्टणतंनिवेसाणि वा' आश्रम-पत्तन-सन्निवेशान् वा-आश्रमादिसमुद्मवान् शब्दान् ‘अन्नपराई वा तहप्पगाराई' अन्यतरान् वा तदन्यान् वा तथाप्रकारान्-ग्रामादिसमुद्भवसदृशान 'विरूवरूबाई' विरूपरूपान्-अनेकविधान 'सदाई' शब्दान् कण्णसोयणपडियाए' कर्णश्राणप्रतिज्ञया-वर्णश्रवणेच्छया श्रोतुम् 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' नो अभिसंधारयह बतलाते हैं-'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, अहावेगइयाइं सहाणि प्लुणेइ' बह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि वक्ष्यमाण रूप वाले एकैक शब्दों को सुने 'तं जहा गामाणि बा' जैसे कि ग्राम में उत्पन्न शब्दों को या 'नयराणि वा नगर में उत्पन्न शब्दों को 'निगमाणि वा' निगम अर्थात बडे नगर में उत्पन्न शब्दों को अगर 'रायहाणाणि वा' राजधानी मे उत्पन्न शब्दों को या 'आसमपट्टणसंनिबेसाणि वा' आश्रम-पत्तन और सन्निवेश में अर्थात् कुटी-झोपडी छोटे छोटे नगरो में उत्पन्न शब्दों को या 'अन्नयराइं वा तहप्पगाराई' इस प्रकार के या दूसरे अन्य प्रकार के भी ग्रामादि में 'विख्वरूवाई सद्दाई' उत्पन्न नाना प्रकार के शब्दो को 'कण्णसोयणपडियाए' कानों से सुनने की इच्छा से बाहर 'नो अभिसंधारिज्जा गमणाए' किसी भी स्थान में जाने के लिये मन में संकल्प या विचार नहीं करे क्योंकि इस प्रकार के ग्रामादि में उत्पन्न शब्दों को सुनने की आसक्ति बढ़ जाने से संयम की विराधना होगी इसलिये संयम का पालन करनेवाले साधु और साध्वी को इस प्रकार के भिख्खुणी वा' ते पूर्वोत सयमशास साधु अने सावी 'अहावेगइयाइं सदाइं सुणेई' ले १क्ष्यमा ए रीतना होने सासणे 'तं जहा' २५-'गामाणि वा' ममा थता शण्होने अथवा 'नयराणि वा' न२ मा यता होने 4241 'निगमाणि वा' निगम अर्थात् भाटा नसभा यता शनि 'रायहाणाणि वा' २४धानीमा यता शहाने अथवा 'आसमपट्टणसंनिवेसाणि वा' पाश्रम, पत्तन, मने सनिवेशमा अर्थात् झुपडी है नाना नाना नगरामा यता भने ५२न शहाने 'अन्नयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं सदाई' આ પ્રકારના કે બીજા અન્ય પ્રકારના પણ પ્રામાદિમાં થતા અનેક પ્રકારના શબ્દોને 'कण्णसोयणपडियार नो अभिसंधारिजा गमणाए' नाथी समजवानी छाथी महार કોઈપણ સ્થાનમાં જવા માટે મનમાં સંકલ્પ કે વિચાર પણ કરવું નહીં. કેમકે-આવા પ્રકારના ગામાદિમાં ઉત્પન્ન થતા શબ્દોને સાંભળવાની આસક્તિ થવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. તેથી સંયમનું પાલન કરવાવાળા સાધુ અને સારવીએ આવા પ્રકારના ગ્રામાદિમાં श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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