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आचारांगसूत्रे येद-मनसिविचारयेद् गमनाय-गन्तुं न संकल्पं कुर्यादित्यर्थः ‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'महावेगइयाई सदाइं मुणेई' यथा वा एककान् शब्दान् शृणोति'तं जहा-आरामाणि वा उजाणाणि वा' आरामान वा-आरामोद्भवान् वा, उद्यानानि वाउद्यानोद्भवान् वा 'वणाणि वा वणसंडाणि वा' वनानि वा-बनोद्भवान्, वनषण्डानि वावनसमूहोद्भवान् ‘देवकुलाणि वा' देवकुलानि वा-यक्षादिमन्दिरोद्भवान् ‘सभाणि वा' सभा वा-परिषदुद्भवान् ‘पवाणि वा' प्रपा वा-पानीयशालिकासमुद्भवान् वा 'अण्णयराई वा तह. प्पगागई' अन्यतरान् वा तदन्यान् वा तथाप्रकारान्-आरामादिसमुद्भूत शब्दसदृशान् ‘विरूवरूबाई सदाई विरूपरूपान्-अनेकविधान् शब्दान् 'कण्णसोयणपडियाए' कर्णश्रवणप्रतिज्ञया. ग्रामादि में उत्पन्न नाना प्रकार के शब्दों को नहीं सुनने का मन में संकल्प या विचार करना चाहिये अर्थात् कभी भी इस प्रकार के शब्दों को नहीं सुनें। ___अब फिर भी प्रकारान्तर से आराम वगीचा वगैरह में उत्पन्न शब्दों को भी संयमशील साधु और साध्वी नहीं श्रवण करे यह बतलाते हैं___ 'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, अहावेगइयाई सदाइं सुणेह' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुझी साध्वी यदि वक्ष्यमाण रूप वाले एकैक शब्दों को सुने 'तं जहा आरामाणि वा' जैसे कि आराम अत्यन्तरमणीय बगीचों में उत्पन्न शब्दों को या 'उजाणाणि वा' उद्यान अर्थात वाटिका में उत्पन्न शब्दों को 'वणाणि वा' वनों में उत्पन्न शब्दों को या 'वणसंडाणि वा' वनषण्ड-वन समूह अथवा वन खण्ड में उत्पन्न शब्दों को या 'देवकुलाणि वा' देवकुल अर्थात देवमन्दिर यक्ष किन्नर गन्धर्य वगैरह के मन्दिरो में उत्पन्न शब्दों को या 'समाणि वा' सभा-परिषद् गोष्ठी में उत्पन्न शब्दों को या 'पवाणि वा' प्रपा-पानीयशाला में उत्पन्न शब्दों को या 'अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई' इसी प्रकार के થતા અનેક પ્રકારના શબ્દોને સાંભળવા મનમાં સંકલ્પ કે વિચાર કરે નહીં અર્થાત્ આવા પ્રકારના શબ્દોને કયારેય પણ સાંભળવા નહીં
ફરીથી બગીચા વિગેરેમાં થતા શબ્દોને પણ સાધુ કે સાધ્વીએ ન સાંભળવા વિષે सूत्र४२ ४थन ४२ छे-से भिक्ख वा भिक्षुणी वा' ते पूरित सयमशील साधु भने सपा 'अहावेगइयाई सद्दाई सुणेइ' ले १६५मा ३५॥ ४ थे शहाने सांगणे 'तं जहा' सभडे-'आरामाणि वा' अत्यत २मणीय मीयामा अत्यन्- यता होने मथ। 'उज्जाणाणि वा' Gधान अर्थातू पाटिमा Gud थत शहोने म 'वणाणि वा' पनामा यता
होने वणसंडाणि वा' वन-वनसभु वनमा यता शहर मया 'देवकुलाणि ar દેવકુળ અર્થાત્ દેવમંદિર એટલે કે યક્ષ, કિનર, ગંધર્વ, વિગેરેના મંદિરોમાં થતા શબ્દોને अथवा 'सभाणि वा' समानी हीमा थता शहेने २५३१। 'पवाणि वा' पानीय मां 64न यता शहोने अथवा 'अन्नयराई वा तहप्पगाराई सदाई' । प्रारना भी स्था
श्री सागसूत्र :४