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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू. २ अ. १० उच्चारप्रस्रवणविधेनिरूपणम् ८८७ मलमूत्रपरित्यागं 'बोसिरिज्जा' व्युत्सृजेत् कुर्यात् ‘से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' स यत् पुनः स्थण्डिलं जानीयात्-'डागवच्चंसि वा' डालवति वा-लघुशाखाप्रधानशाकस्थाने 'साग वच्चंसि वा' शाकवति वा-शाकप्रधानस्थाने 'मूलगवच्चंसि वा' कपित्थवति वा-कपित्थनामवनस्पतिविशेषस्थाने 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' अन्यतरस्मिन् वा तदन्यस्मिन् वा तथाप्रकारे-शाप्रधानस्थानादियुक्त स्थण्डिले 'नो उच्चारयासवणं वोसिरिज्जा' नो उच्चारप्रस्रवणम् मलमूत्रपरित्यागं व्युन्सजे-कुर्यात् 'से भिक्खू वा भिवखुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' स-संयमवान् साधुः यदि पुनः स्थण्डिलं जानीयात् 'असणवणंसि वा' अशनवने वा-बीयकनामकवनस्पतिवने वा 'सणवणंसि वा' शणवने वा 'धायइवणंसि वा' धातकीवने वा-धातकीवृक्षविशेषवने 'केयइवणंसि वा' केतकी. वने वा 'अंबवणंसि वा' आम्रवने वा 'असोगवणंसि वा' अशोकवने वा 'नागवणंसि वा' नाग में 'मलगवच्चंसि वा' कपित्थनामक वनस्पति विशेषवाले स्थान में है, अगर 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' इस के अलावा इस प्रकार के अन्य स्थान में अर्थात् शाकप्रधान स्थानवाले स्थान में 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा' मलमूत्र का परित्याग नहीं करे।।
फिर भी प्रकारान्तर से शण वगैरह के वनों से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में संयम शील मुनिमहात्माको मलमूत्र त्याग का निषेध करते हैं-'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा'-वह पूर्वोक्त भिक्षु-संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि ऐसी वक्ष्यमाण रूपसे स्थण्डिलभूमी को-जान ले कि इस स्थण्डिलभूमी के पास-'असणवणंसि वा'-अशनवन अर्थात् बीयक नाम के वनस्पति का वन है या-'सणवगंसि वा'-शण का वन है या-धायडवणंसि वा'-धातकी नाम के वृक्ष विशेष का वन है या-'केयइवणंसि वा'-केतकी-केवडे का वन है या-'अंब
मा २५ भूमि 'डागवच्चसि वा' नानी नानी युत भने ४२नी शाणा स्थानना पासे छे. 'सागवच्चंसि वा' मालनी वाडी41 स्थानमा छ, अथवा 'मूलगवच्चंसि वा' पित्य नामना वनस्पति विशेष वा स्थानमा छ 2424। 'अन्नयर सि वा तहप्पगार सि थंडिलंसि" माना सिवाय माना । अन्य स्थानमा अर्थात् प्रधान स्थानमा 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' भतभूत्र त्याग ४२३। नहीं,
હવે શણ વિગેરેના વનના સબંધવાળી સ્પંડિલભૂમીમાં સાધુ કે સાધ્વીને મલમૂત્રના त्यागना निषेध ४२तां सूत्र४२ ४ छ-'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' ते सयमशास साधु ने सपी से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' ने भूमान सेवा प्र४.२थी on भी है । स्थतिभूभानी पासे 'असणवणंसि वा' अशनवन अर्थात जी४ नामनी वनस्पतिनु वन छ अथवा 'सणवणंसि वा' शनु पन छे. अथवा 'धायइवणंसि वा धातो नामना वृक्ष विशेषनु वन छ. 2424। 'केयइवणंसि वा' ती अर्थात् कानुन छ, अथवा 'अंबवणंसि वा' मानुन छे. अथवा 'असोगवणंसि वा' मा नाभना वृक्षानुन छे.
श्री मायाग सूत्र:४