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________________ ६२४ आचारांगसूत्रे भिक्षुकी वा 'इथि आमंतेमाणे' स्त्रियम् स्त्रीजातिम् आमन्त्रयन् सम्बोधयन् 'आमंतिए वा अप्पडिसुमाण एवं वइज्जा' आमन्त्रितां सम्बोधितां वा अप्रतिशृण्वतीम् - श्रवणमकुर्वतीम् एवं वक्ष्यमाणरीत्या वदेत - - तद्यथा - 'आउसोत्ति वा भइणित्ति वा' आयुष्मतीति वा भगिनीति 'भोईति वा भगवईति वा' भवतीति वा भगवतीति वा 'साविति वा उवासिएत्ति वा श्राविकेति वा उपसिकेति वा 'धम्मिएत्ति वा धम्मप्पिएत्ति वा' धार्मिकीति वा धर्मप्रियेति इत्येवंरीत्या स्त्रियं सम्बोध्य भाषेतेत्युपसंहरन्नाह - ' एपप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभिकंख भासिज्जा' एतत्प्रकाशम् - आयुष्मती भगिनीप्रभृति शब्दप्रकाराम् भाषाम् असावद्याम् - अगर्खाम् अज्ञादिदोषरहिता मित्यर्थः यावद्-अक्रियाम् अकर्कशाम् अक्टुकाम् अनिष्ठुराम् अपरुषाम् अकर्माश्रवकरीम्, अच्छेदन करीम् अभेदनकरीम् अपरितापनकरीम् अनपद्रावण करीम् वाइस्थि आनंतेमाणे' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी - साध्वी किसी स्त्री जातिको आमंत्रण संबोधन करते हुए या 'आमंतिए वा' आमंत्रित संबोधित करने पर यदि वह स्त्री 'अप्पडिसुखुणेमाणिं एवं वइज्जा' नहीं सुने तो उस स्त्री को इस प्रकार संबोधित कर बोलना चाहिये कि 'आउसीत्ति वा' हे आयुष्मती ! 'भइणितिवा' हे भागिनि ! 'भोईत्ति वा' हे भगवती 'साविगेत्ति ar' हे श्राविका ! 'उवासगेत्ति वा' हे उपासिका ! 'धम्मिएत्ति वा' हे धार्मिकी ! 'धम्मपितिवा' हे धर्मप्रिय ! इत्यादि शब्दों द्वारा स्त्री जाति को संबो धन करना चाहिये और 'एयपगारं भासं असावज्जं जाव' इस प्रकार के शब्दों के मन से 'अभिकख भासिज्जा' पर्यालोचन कर विचार करके बोलना चाहिये किन्तु वह सम्बोधन वाक्य सावध समहर्य नहीं होना चाहिये एवं सक्रिय अनर्थ दण्ड प्रवृत्ति जनक भी नहीं होना चाहिये तथा कर्कश तथा परुष कठोर एवं कटु भी नहीं होना चाहिये तथा वह सम्बोधन शब्द कम अवका जनक भी नहीं होना चाहिये जिस से संसार के बन्धन में पडने के लिये कर्म रूप आव उत्पन्न हो एवं हृदय को कष्टदायक भी नहीं होना चाहिये 'अप्प डिसुणेमाणे' सांगे नहीं तो थे खीने 'एव' वइज्जा' खेवी शेतेस मोधन मरीने महेवु लेखे }- 'आउसीति वा भइणित्ति वा' डे आयुष्मती ! हे लगिनी ! 'भोईत्तिवा साविपत्ति बा' हे भगवती ! अगर डे श्राविश्र ! 'उवासगेत्ति वा' हे उपासिका ! 'धम्मिएत्ति वा धार्मि४] 'धम्मप्पित्ति वा' हे धर्मप्रिय ! विगेरे शहाथी रखी भतीने संभोधन ४२ लेहो भने 'एयपगारं भास असावज्ज' भाषा प्रहारना शण्होने मनथी पर्यायायन रीने याने विचार रीने मोड़वा परंतु ते संबोधन वाध्य 'असोवज्जे जाव अभिकंख માલિન્ના' સાવદ્ય ગહ હૈાવા ન જોઇએ તથા સક્રિય અનથ ક્રૂડ પ્રવૃત્તિજનક પણ ન હાવા જોઈએ. તથા કર્કશ તથા પરૂષ કઢાર અને કટુ લાગે તેવા હાવા ન જોઈએ. તથા એ સાધન શબ્દ કોઁસ્રવ જનક પણ હાવા ન જોઇએ કે જેનાથી સ'સારના શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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