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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ५ सू० ४७ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम्
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'णो ससिणिद्वार पुढवीए' नो सस्निग्धया आर्द्रीभूतया पृथिव्या 'णो ससरक्खाए पुढवीए' न सरजस्कया पृथिव्या 'णो चित्तमंताए सिलाए' नो चित्तवत्या सचित्तया शिलया प्रस्तरखण्डरूपया, एवं 'णो चित्तमंताए लेलूए' नो चित्तवता सचित्तेन लेलुना लेन्डुना पृथिवीखण्डरूपेण 'कोलावासंसि वा दारुए' कोलावासे कोला घुणास्तदावासभूते दारुणि धुणयुक्तकाष्ठे 'जीवपट्टिए सअंडे सपाणे जाव' जीवप्रतिष्ठिते जीवष्ठ साडे अण्डसहिते सप्राणे प्राणिसहिते यावत् - सबोजे सहरिते सहिमे सोदके सोनिक कमृतिका मर्कटे 'स संताणए' स सन्तान के 'णो आमज्जिज्ज वा पमज्जिज्ज वा' नो नैव आमृज्यात् सकृद् वा आमर्जनं कुर्यात्, नवा प्रमृज्यात् पुनः पुनर्वा प्रमार्जनं कुर्यात्,
संलिप्त कर्दमादिनैव शोधयेत प्रक्षालयेदित्यर्थः । एवं तत्र स्थितएव 'संलिहिज्ज वा मार्ग के नहीं होने से उसी वप्रादियुक्त मार्ग से जाने पर प्रस्खलनादि के कारण कर्दमादि से उपलिप्त होने पर भी शरीर को 'णोससिणिद्वार पुढवीए' गीली मिट्टी गैह से साफ सुथडा नहीं करे इस तात्पर्य से कहते हैं-'णो ससरक्खाए पुटate' इत्यादि, रजोयुक्त मिट्टी से या'णो चित्तमंताए सिलाए' सचित्त प्रस्तर खण्ड रूप शिला से भी कर्दमादि से उपलिप्त शरीर को प्रमार्जित नहीं करे इसी तरह 'नो चित्तमंताए लेलए' सचित्त पृथिवीखण्डरूप लेष्टु 'ढेला' से भी उस अशुचिमलमूत्र कीचड आदि से उपलिप्तकाय को प्रक्षालित नहीं करे, इसी तरह 'कोला वासंसि दारुणि' घृण - दीमकलगे हुए काष्ट में और 'जीवपइट्ठिए सअंडे' जीव युक्त अण्ड युक्त अथवा 'सपाणे' प्राणी से युक्त 'जाव ससंताणए' यावत् बीज युक्त, हरितयुक्त एवं सहिम - पाला बर्फ ओस से युक्त एवं सोदक- ठण्डा जलयुक्त तथा उत्तिङ्ग क्षुद्र कीटपतङ्गयुक्त एवं पनक फनिगा से युक्त तथा जलमिश्रितमिट्टीसे युक्त एवं समर्कट संतान मकराजाल से युक्त काष्ठ में उस अशुचि मलमूत्रादिसे उपलिस रथी विषम व विगेरेथी शरीर भरडांध लय तो पशु शरीरने 'गोससिद्धाए पुरवीए' लीलीभाटी विगेरेथी सासु न ४२ हेतुथी उडे छे. 'णो ससरक्खाए पुढवीए' धुणपाणी भाटी अगर 'चित्तताए लोलुए' सचित्त पत्थरथी पशु अव विगेरेथी भरडायेस शरीर साई કરવું નહીં. એજ પ્રમાણે ઢેખલાથી પણ એ અશુદ્ધિ એવા મલમૂત્ર કીચડ વિગેરેથી भरडायेस शरीरने साइन ४२ प्रमाणे 'कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए' | सागेस साडामां भने 'सअंडे सपाणे जाव ससंताएं डीवाजा अथवा प्राणीथी युक्त अथवा ખીવાળા હરિત લીલેાતરીવાળા તથા સાહિમ-બરફ કે એસવાળા તથા ઠં‘ડા પાણીવાળા તથા જીણુા કીડી, પતંગીયા તથા જલ મળેલ માર્ટિવાળા મકાડાના સમૂહવાળા લાકડાથી मे अशुद्धि भूत्राहिथी भरडायेल शरीरने 'आमज्जिज्ज वा पमज्जिज्ज वा' अवार અનેકવાર પ્રમાન કરવું નહી. અર્થાત્ એ શરીરમાં ચાંટેલ મલમુત્ર કાદવ વિગેરેને छपे नहीं ते तेथे स्थितिमां त्यां रडीने 'स'लिहिज्ज वा विलिहिज्ज वा' ससेमन है
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪