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आचारांगसत्र गतिम् स्थितिम् , च्यवनम्-देवलोकाद् देवानां च्यवनम् , 'उववायं भुत्तं पीयं कडं' उपपातम्-नरके देवानां जन्मस्थानम्, भुक्तम्-खाद्यम् , पीतम्-पेयपदार्थान् , कृतम्-सम्पादित चौर्यादिकर्म, 'पडिसेविय' प्रतिसे वितम् मैथुनादि सेवनम् 'आविकम्मं रहो कम्म' आविष्कर्म-- प्रकटकार्यम् , रहः कर्म गुप्तकार्यम् 'लवियं कहियं' लपितम्-प्रलापम्, प्रलपन्तं वा, कथितम्-एकान्ते उक्तम्-गुप्तवार्ता मित्यर्थः 'मणो माणसियं' मनो मानसिकम् जीवानां चित्तगतं मनोगतश्चाभिप्रायम्, 'सव्व लोए' सर्वलोके -सर्वेषां लोकानां विषये 'सब्ध जीवाणं' सर्व जीवानाम्-सर्वेषां प्राणिनाम् 'सव्यभावाई सर्वभावान्-सर्वाभिप्रायान 'जाणमाणे पासमाणे' जानाना-नानन्, पश्यन्-अवलोकयन् ‘एवं च णं विहरई' एवञ्च खलु-अनया रीत्या केवल. श्रीमहावीर स्वामी केवल ज्ञान के प्रभाव से जानते थे 'उववायं' एवं उपपात को अर्थात् नरक में देवों के जन्मस्थान को तथा 'भुत्तं' मुक्त अर्थात् खाद्य पदार्थों को एवं 'पेयं पेय पदार्थों को तथा 'कडं' कृत को याने किये हुए शुभाशुभ कर्मो को 'पडिसेवियं' एवं प्रतिसेवित को याने मैथुनादि सेवन को तथा 'आविकम्म' आविष्कर्म याने प्रकट कार्यो को तथा 'रहो कम्म' रहःकर्म याने गुप्तकार्यों को 'लवियं एवं लपित अर्थात् प्रलाप को या प्रलाप करते हुए प्राणियों को तथा 'कहियं कथित अर्थात् एकांत में उक्त गुप्त वार्ता को एवं 'मणोमाणसियं' मनो मानसिक याने जीवों के चित्तगत और मनोगत अभिप्रायों को तथा 'सव्वलोर सभी लोगों के विषय में तथा 'सव्व. जीवाणं सव्व भावाई' सभी जीवों के याने सभी प्राणियों के सर्वभावों को याने सभी अभिप्रायों को 'जाणमाणे जानते हुए और देखते हुए अर्थात् केवल ज्ञान से सभी जीवजंतुओं के अभिप्रायों को जानते हुए और 'पासमाणे केवल दर्शन से देखते हुए 'एवं चणं विहरइ' विचरते थे याने विहार करने लगे। शानना प्रभावी यता ता. अर्थात् Me से हता. तथा, 'उबवाय' उत्पातने અર્થાત્ નરકમાં દેવના જમસ્થાનને તથા "મુ ભુત અર્થાત્ ખાદ્ય પદાર્થોને તથા 'पीयं' पेय ५४ा तथा 'कर्ड' पृतने अर्थात ४२वाभा यावेस शुभाशुभ भने तथा 'पडिसेविय' प्रतिसेवितने अर्थात भैथुना सेपन तथा 'आविकम्म' मावि मर्यात प्रयो ने तथा 'रहोकम्म' २६: ४ अर्थात् शुसार तथा 'लवियं' पित अर्थात् प्रापने पर प्रसा५ ४२ ना२। प्राणियोन तथा 'कहिय' थित अर्थात् तिमi ४३८ शुत पातने तया 'मणोमाणसियं' भनोमानसिमर्थात् वे न चित्तात अने मनोगत समिप्रायाने तथा 'सबलोए सव्वजीवाणं' सायना समयमा तथा साना मातू या प्राणायाना 'सवभावाइं जाणमाणे पासमाणे' समावान मर्थात् तमना બધા અભિયાને જાણીને અને જોઈને અર્થાતુ કેવળજ્ઞાનથી બધાજીવ જંતુઓના અભિ. प्रायोने Meीने सन 198 नया सुमार एवं च णं विहरइ' से प्रथी वियरता sal,
श्री सागसूत्र :४