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________________ मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० १ अ. १५ भावनाध्ययनम् १०९३ वर्णयितुमाह-' से भगवं अरहं जिणे जाए केवली' स खलु भगवान अर्हन्- तीर्थकृत् जिन:जिनेन्द्रः जातः केवलो -केवलज्ञानी भगवान् महावीर ः 'सव्वन्नू सव्वभावदरिसी' सर्वज्ञ:सर्वपदार्थज्ञाता सर्वभावदर्शी - सर्वपदार्थद्रष्टा 'सदेवमणुयासुरम्स' सदेव मनुष्यासुरस्य - देवानां मनुष्याणाम् असुरकुमाराणां 'लोगस्स' लोकस्य सर्वलोकानाञ्च 'पज्जाए जाण३' पर्यायान् जानाति तथाहि 'तं जहा - आगई गई ठिई चयणं' तद्यथा - आगतिम् - जीवानाम् आगतिम्, का सामर्थ्य बतलाते हैं- 'से भगवं अरहं जिणे जाए केवली' भगवान् श्री महावीर स्वामी को केवलज्ञान उत्पन्न होने पर वह प्रसिद्ध भगवान् अर्हन् तीर्थकर जिनेन्द्र केवलज्ञानी होकर 'सव्वन्न् सव्वभावदरिसी' सर्वज्ञ याने सभी पदार्थों को जाननेवाले एवं सर्वभावदर्शी सभी पदार्थों को देखनेवाले होने से 'सदेवमणुयासुरस्त लोगस्स' सभी देवों के तथा सभी मनुष्यों के और सभी असुरकुमारों के तथा सभी लोगों के 'पज्जाए जानइ' पर्यायों को जानने लगे अर्थात् कब कौन देवादि सभी लोग किस रूप में गमनागमनादि पर्याय करेंगे इन सभी बातों को भगवान् श्रीमहावीरस्वामी केवलज्ञान के प्रभाव से जानते थे 'तं जहा आगई गई ठिई' जैसे कि आगति, गति, और स्थिति को याने जीवों के गमनागमनादि पर्यायों को अर्थात् कोन सा जीव जन्तु प्राणी किस समय कहां से आकर कहां पर जायेंगे इन सभी बातों को केवलज्ञान के प्रभाव से जानने लगे एवं 'चयणं' किस देव लोक से किस समय किन देवों का च्यवन ( पतन ) होगा याने कोन देव कब किस देवलोक से गिरकर इस लोक में आने वाले हैं या आगये हैं अथवा आये हैं इस सभी बातों को भी भगवान् * હવે ભગવાન શ્રીમહાવીર સ્વામીને થયેલ કેવળજ્ઞાન અને કેવળદનની શકિત सूत्रार मतावे छे- ' से भगवं अरहं जिणे जाए' लगवन् श्रीमहावीर स्वामीने ठेवण જ્ઞાન ઉત્પન્ન થવાથી ભગવાન કેવળજ્ઞાની થઇને સવ્વન્ત્’ સજ્ઞ અર્થાત્ સઘળાપદાર્થોને लथुनारा तथा ‘सव्वभावदरिसी' सर्वभाद्दर्शी अर्थात् सघणा पहार्थोना द्रष्टा 'सदेवमणुया सुरस लोगस्स पज्जाए जाणई' सजा देवाना तथा सधना मनुष्योना तेम सजा असुर કુમારોના તથા સઘળા લેકના પર્યાયને જાણવા લાગ્યા અર્થાત કયારે કેણુ દેવાર્દ સઘળા લેાક કેવા પ્રકારથી ગમનાગમનાદિ. પર્યાય કરશે. એ તમામ વાતેને ભગવાન્ શ્રીમહા वीर स्वामी ठेवणज्ञानना प्रभावथी लगता देता 'तं जहां' प्रेम 'आगई' आगति, 'गई ' ગતિને અને ૐ' સ્થિતિને અર્થાત્ જીવેના ગમનાગમનાદિ, પર્યાચાને અર્થાત્ કયા જીવ જન્તુ કે પ્રાણી કચે વખતે કયાંથી આવીને યાં જશે એ તમામ વાતાને કેવળજ્ઞાનના प्रभावथी भगुवा साग्या तथा 'चयण' या देवसेोथी या समये या देवनु स्यवन (પતન) થશે અર્થાત્ કયાદેવ કયારેને કયા દેવલેાકમાંથી ચવીને આલેાકમાં આવશે આવી ગયા છે કે આવે છે એ તમામ વાતને ભગવાન્ કેવળજ્ઞાની શ્રીમહાવીર સ્વામો કેવળ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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