SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1017
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २००६ आचारांगसूत्रे इत्यर्थः 'जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे' योऽसौ ग्रीष्माणाम्-ग्रीष्मऋतूनां चतुर्थोमासः 'हमे पक्खे' अष्टमः पक्षः 'आसाढसुद्धो' आषाढशुद्ध: - आषाढशुक्लपक्षः, खलु वर्तते 'तरसणं आसाढ सुद्धस्स' तस्य खलु आषाढशुद्धस्य - आषाढशुक्लपक्षस्य 'छट्टी पक्खेणं' षष्ठीपक्षे खलु - पष्ठी तिथिरात्रौ 'हत्युत्तराहिं नक्खत्तेणं' हस्तोत्तराभिः - उत्तराफाल्गुनीरूपाभिः नक्षत्रेण 'जोगवा' योगमुपागतेन - उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रेण सह चन्द्रामसो योगे प्राप्ते सति इत्यर्थः ' महा विजयसिद्धत्थपुप्फुत्त रवरपुंडरीय दिसा सोवत्थिय बद्धमाणाओ' महाविजयसिद्धार्थ पुष्पोत्तरवर- पुण्डरोकदिक स्वस्तिक वर्द्धमानात्- महाविजयसिद्धार्थ, - पुष्पोत्तरप्रधानपुण्डरीककमलवत् श्वेत- दिक्- स्वस्तिक-वर्द्धमाननामका 'महाविमाणाओ' महाविमानात्महा विमानरूप देवलोकादित्यर्थः 'वीसं सागरोवमाई आउयं पालइत्ता' विंशति सागरोपमानि आयुष्यं पालयित्वा - पूर्ण कृत्वा ततः 'आउक्खणं' आयुः क्षयेण - आयुषोनाशेन देवायुः क्षये णेत्यर्थः 'ठिइक्खणं' स्थितिक्षयेण देवलोकस्य वैक्रियशरीरस्थितिकालनाशेन 'भवक्खएणं' वाले चतुर्थ आरक का केवल पचहत्तर वर्ष और साढे आठमास अवशेष रह जाने पर 'जे से गिम्हाणं च उत्थे मासे' जो वह प्रसिद्ध ग्रीष्म ऋतु का चतुर्थ मास 'अट्ठमे पक्खे आसाढ सुद्धे' अष्टम पक्ष आसाढ शुद्ध अर्थात् ग्रीष्म ऋतु के चतुर्थ मास मैं और अष्टम पक्ष में याने 'तस्स णं आसाढसुद्धस्स छट्ठी पक्खे णं' आषाढ शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि की रात में 'हत्थुत्तराहिं नक्ख तेणं' हस्तोत्तर अर्थात् उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में ' जोगमुवागणं' योग होने पर अर्थात् उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग प्राप्त होने पर 'महाविजय सिद्धस्थ पुप्फुत्तरवर पुंडरी' महा विजय - सिद्धार्थ पुष्पोत्तर वर अर्थात् पुष्पोत्तर प्रधान पुण्डरीक कमलवत् श्वेत' दिसासोबत्थिय वद्धमाणाओ महाविमाणाओ' द्विकस्वस्तिक वर्द्धमान नामक महाविमान रूप देवलोक से 'विसं सागरोबमाई' विंशति सागरोम 'आउयं पालइत्ता' आयुष्य को पूर्णकर बाद में 'आउक्खएण' आयुष्य के क्षय होने पर अर्थात् देवायुष्य का क्षय होने पर और 'ठिखएणं' देवलोक के ચોથા આરાના કેવળ પ ંચોતેર વર્ષી અને સાડા આઠ માસ બાકી રહે ત્યારે ને તે શિદ્દાનં चथे मासे' प्रसिद्धसेवी श्रीष्मऋतुना योथा भासमा 'अट्टमे पक्खे आसाढसुद्धे' मामा पक्षमां खेटो } आषाढ शुद्ध पक्षनी छुट्टी तिथीनी रात्रे 'हत्थुराहि णक्खत्तेणं स्तोत्तर अर्थात् उत्तराशङ्गुनी नक्षत्रमां 'जोगमुत्रागणं' योग यावे त्यारे अर्थात् उत्तर- शब्गुनी नक्षत्रनी साथै यद्रनो योग अथाय त्यारे 'महाविजयसिद्धत्य पुष्फुत्तरवरपुंडरीया' महावित्र्य सिद्धार्थ पुष्योत्तरवर अर्थात् प्रधान पुंडरी मानी प्रेम 'दिसासोवत्थियवद्धमाणा ओ' श्वेत स्वस्ति वृद्धभान नामना 'महात्रिमाणाओ' भडाविभान३५ देवाथ 'वीसं सागरोत्रमा आउय' पालइत्ता' वीस सागरोपम आयुष्यने पूर्ण र्या पछी 'आउवखए गं: ' आयुष्यना क्षय थया पछी अर्थात् हेवायुष्यनो क्षय थया पछी 'ठिझक्खरणं' ठेवलेोकना वैडियशरीरनी स्थितिाण सभाप्त थया पछी શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy