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________________ - मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० २ अ. १५ भावनाध्ययनम् रूपाया व्यतिक्रान्तायां-व्यतीतायां सत्याम् , 'एवं सुसमाए समाए वीइक्कताए' सुषमायाम्सुषमानाम-त्रिकोटाकोटी सागरोपमप्रमाणयुक्तायां समायाम्-द्वितीयारकरूपायांव्यतिक्रान्तायाम्-अतीतायां सत्याम्, एवं 'सुप्तमदुस्समाए समाए वीइकताए' सुपम दुष्षमायामसुषमदुष्पमानामक द्विकोटाकोटी सागरोपमप्रमाणवत्यां समायाम् तृतीयारकरूपायां व्यतिक्रान्तायाम्-व्यतीतायां सत्याम्, एवं 'समसुसमाए समाए बहु वीइकताए' दुष्षम सूप. मायाम्-दुष्प मसुषमानामक चतुर्थारकरूपायां समायां समाय-वर्षाभिधायाम् बहु व्यतिक्रान्तायाम् द्विचत्वारिंशत् सहस्रवर्षेन्यूनैककोटाकोटी सागरोपमप्रमाणवायां सत्याम् ‘पन्नहत्तरोए वासेहि' पञ्चसप्तति वर्षेषु 'मासेहि य अद्ध वमेहिं से सेहि' मासेषु च अर्द्धनवमेषु-सा - ष्टमासेषु च शेषेषु-अवशिष्टेषु सत्सु एताता द्वाचत्वारिंशद् वर्षसहस्रन्यून फकोटाकोटीसागरोपमप्रमाणकस्य चतुर्थारकस्य केवलं साोष्टमासाविकपश्च सप्ततिवर्षावशेषेषु कालेषु से सम्पन्न महावीर स्वामी इमाए ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चीइ. कताए' सुषमसुषमा नामक चतु:कोटाकोटी सागरोपम प्रमाण युक्त समा अर्थात् प्रथम आरक रूप इस अवसर्पिणीके व्यतीत होने पर एवं सुषमा नामक त्रिकोटाकोटी सागरोपम प्रयाण युक्त समा अर्थात् द्वितीय आरक रूप वर्ष के बीत जाने पर 'सुसमदुस्लमाए समाए वीइकताए' एवं सुषम दुषमा नामक द्विकोटाकोटी सागरोपम प्रमाण वाली समा अर्थात तृतीय आरक रूप वर्ष के वीत जाने पर एवं 'दूसमसुसमाए समाए बहु वीइक्कंताए' दुष्षम सुषमा नामक चतुर्थ आरक रूप द्विचत्शरिंशत् सहस्त्र वर्ष न्यून एक कोटा कोटी साग रोपम प्रमाण वाली समा अर्थातू वर्ष के बहुत अधिक वीत जाने पर अर्थात् 'पन्नहत्तरीए वासेहि पश्च सप्तति अर्थात् पचहत्तर (पंचोतेर) वर्ष और 'मासेहिंय अद्ध नवमेहिं सेसेहि' साढे आठ मास अवशिष्ट रह जाने पर एतावता द्विचत्वारिंशत् (बयालिश) वर्ष सहस्त्र न्यून एक कोटा कोटी सागरोपम प्रमाण ३५ पार पाना भगोथी युक्त श्री वीर स्वामी 'इनाए ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए' સુષમ સુષમાં નામના ચાર કેટકેટી સાગરોપમ પ્રમાણુ વાળે સમાઅ પહેલા આરારૂપ આ અવસર્પિણી સમાપ્ત થાય ત્યારે તથા સુષમા નામના ત્રણ કોટાકેદી સાગરોપમ પ્રમાણવાળા सभामर्थात् भीत भा२। ३५ वष पीत गया पछी तथा 'सुसमदुस्प्तमाए समाए विइ. कंताए' सुषम हुषमा नामनामेटाटि सागरे।५म प्रभागुवाणा सभामर्थात् त्रीन सारा३५ वर्षना वीति या पछी तथा 'दुस्समसुसमाए समाए विइक्कंताए' मसुषमा નામના ચોથા આરારૂપ બેંતાલીસ હજાર વર્ષ જૂના એક કટાકેટિ સાગરેપમપ્રમાણવાળી समामात् नो धारे मा वाति या पछी मेटवे है ‘पन्नहत्तरीए वासेहि' ५५ सातति अर्थात् ५ यात२ १५ भने 'मासेहि अद्धनवमेहि सेसेहि सा1 28 भास माजी રહે ત્યારે એટલે કે બેંતાલીસ હજાર વર્ષ જૂની એક કટાકેટિ સાગરોપમ પ્રમાણવાળા श्री आया। सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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