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________________ मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू. २ अ. १५ भावनाध्ययनम् भवक्षयेण-देवगतिनामक.मक्षयेण देवभवं समाप्येत्यर्थः 'चुए' च्युतः-तस्माद् देवलोकाद् च्युत इत्यर्थः 'चइत्ता' च्युत्मा-देवलोकात् चवनं कृत्वा 'इह खलु जंबुद्दीवेणं दीवे' इहअस्मिन् खलु जम्बूद्वोपे नाम्निद्वीपे 'भारहे वासे' भारते वर्षे 'दाहिणभरहे' दक्षिणार्द्धभरते-दक्षिणार्द्धभरतखण्डे 'दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेसंसि' दक्षिणब्राह्मणकुण्ड पुरसनिवेशेदक्षिणदिशायाम् ब्राह्मणकुण्डपुरनामोपनगरे 'उस दत्तस्त महणस्स' ऋषभदत्तस्य ब्राह्मणस्य 'कोडालसगोत्तस्स' कौण्डिल्यगोत्रस्य पत्न्याः 'देवाणदाए' देवानन्दाया: 'माहणीए जालंधरस्सगुत्ताए' ब्राह्मण्याः जालन्धरायणगोत्रायाः 'सीहब्भवभूएणं अपाणेणं' सिंहोद्भवभूतेन गुफायां प्रविशन सिंहसदृशेन आत्मना-निजात्मना 'कुञ्छिसि गम्भं व 'ते' कुक्षौउदरे गर्भे व्युत्क्रान्तः-गर्भरूपेण उत्पन्न इत्यर्थः तत्र तस्मिन् समये 'समणे भगवं महावीरे' श्रमणो भगवान् महावीरस्वामी 'तिनाणोवगए यावि होत्था' त्रिज्ञानोपगनश्वापि-अभवत्श्रुतमति-अषधिज्ञानरूपज्ञानत्रयोपपन्नः अभूदित्यर्थः अतएव 'चइस्लामित्ति ज णइ' चोष्येवैक्रिय शरीर के स्थिति काल के नाश होने पर और 'भवकावएणं' भव क्षय देवगति नामक कर्म के क्षय होने पर अर्थात् देव भव के समाप्तक और 'चुए चइत्ता' देवलोक से च्यत होकर अर्थात् देवलोक से च्यवन कर इस 'इह खलु जंबुद्दीवे गं दीवे' जम्बुद्वीप (एशिया) नाम के द्वीप में अर्थात् जम्बूद्वीप में 'दाहिणभरहे' दक्षिणार्ध भरतखण्ड में 'दाहिणमाहणकुंडसंनिवेसंसि' दक्षिण दिशा में ब्राह्मण कुंडपुर नामक उपनगर में 'उसभदत्तस्स माहणस्स' ऋषभदत्त ब्राह्मण जोकी 'कोडालसगोत्तस्त' कौडिल्यगोत्री थे उनकी 'देवानंदाए' देवानंदा नाम की 'माहणीए' ब्राह्मगी जो की 'जालंधरसगुत्ताए' जालंधर गोत्र की थी 'सीहाभयभूएणं अप्पाणेणं' गुफा में प्रवेश करते हुए सिंह के समान अपने आत्मा से 'कुञ्छिसि गम्भं वक्ते' उदर में गर्भरूप में उत्पन्न हुवे. 'समणे भगवं महावीरे उस समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी 'तिन्नाणोवगए याविहोत्था' तीन ज्ञानों से भी युक्त हुए अर्थात् श्रुतज्ञान तथा 'भवक्खए णं' अक्षय गति नामनामना क्षय या पछी अर्थात् देवम समाप्त ४शन तथा पोथी 'चुए' श्युत २४ 'चइत्ता' थी यवाने 'इह खलु जंबुद्दीवे णं दीवे' सामूदी५ (नेशिया) नमन द्वीपमा अर्थात् २८यूदी५मा 'दाहिणडूढभरहे' क्षिा मरतमा ६.क्षण भारतमा 'दाहिणमाइणकुंडपुरसंनिवेसंसि' इक्षिण ६i ब्रह्म ५२ नामना 3५२मा 'उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स' यि गोत्रना अपमहत्त नामाना ग्राम एनी पत्नी 'देवानंदाए माहणीए जालंधरस्स गुत्ताए' राय जवानी वान हा प्राझीन। ६२मा प्रवेश ४२॥ 'सीहु भवभूए' सिंह स२ 'अप्पाणेणं' पोताना मामाथी 'कुच्छिति गभंवक्कते' आपल्या उत्पन्न या तथा ते समय 'समणे भगवं महावीरे' श्रम र मापान मडावीर स्वामी तिन्नाणोवगए यावि होत्था' त्र ज्ञानाथी युत प्या. अर्थात् श्रुतज्ञान, श्री आया। सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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