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________________ ४९७ शीतोष्णीय-अध्य० ३. उ. ४ दिश्यते येनेत्युपाधिः-कर्मजनितो नरकादिभवः, अस्ति किम् ? । श्रीसुधर्मास्वामी उत्तरयति-न विद्यते । 'नास्ति' इति-उत्तरवाक्यार्थस्य दाढयबोधनाय, अध्ययनसमाप्तिसूचनाय वाऽर्थतः पुनः कथनम् । यद्वा-'न विद्यते' इत्यन्तं प्रश्नवाक्यम्। पश्यकस्योपाधिः किमस्ति, उत न विद्यते? अत्रोत्तरमाह-नास्तीति । अष्टविधं कर्म, कर्मजनितनरकादिभवो वा केवलिनो न भवतीत्यर्थः । तथा चोक्तं-- ज्ञानावरणीयादिकर्म भाव-उपाधि, इस प्रकारसे उपाधिके दो भेद हैं; इनमेंसे कोई भी उपाधि उनके नहीं है । अथवा कर्मजनित जो नरकादि पर्याय है वह भी उपाधि है, यह उपाधि भी उनमें नहीं है। प्रश्न और उत्तरके रूप में यह सूत्र है, जैसे-"किमथि उवाही पासगस्स" किमस्ति उपाधिः पश्यकस्य ?, यहां तक प्रश्नवाक्य है “न विज्जइ नत्थि"-न विद्यते नास्ति, यह उत्तर वाक्य है। अर्थात् सर्वज्ञ-तीर्थङ्कर भगवानके उपाधि है कि नहीं? नहीं है । यहां पर "न विद्यते" इस क्रियाकी पर्यायवाची क्रिया जो "नास्ति" बतलाई है, सो उत्तरवाक्यके अर्थकी दृढ़ता समझानेके लिये, और अध्ययनकी समाप्ति सूचन करनेके लिये। ___अथवा-"किमथि उवाही पासगस्स न विज्जइ" यहां तक प्रश्नवाक्य है, और “नथि" यह उत्तरवाक्य है । अर्थात्-सर्वज्ञ-तीर्थङ्करको उपाधि है कि नहीं? यहां तक शिष्यका प्रश्न है । गुरुका उत्तर है'नथि'-नहीं है। ____ भावार्थ केवली तीर्थङ्कर भगवानके न अष्टविध कर्मरूप उपाधि है और न कर्मजन्य-नरकादिपर्यायरूप उपाधि ही है, वे उपाधिसे निर्मुक्त પ્રકારે ઉપાધિના બે ભેદ છે. તેમાંથી કઈ પણ ઉપાધિ તેને નથી. અથવા કર્મજનિત જે નરકાદિ પર્યાય છે તે પણ ઉપાધિ છે, તે ઉપાધિ પણ તેમનામાં નથી. પ્રશ્ન मन उत्तर॥ ३५मां सूत्र छ, रम-“किमथि उवाही पासगस्स"-किमस्ति उपाधिः पश्यकस्य ? माही सुधी प्रश्नवाच्य छे. “ न विज्जइ नत्थि"-नविद्यते नास्ति से ઉત્તર વાકય છે. અર્થાત્ સર્વજ્ઞ તીર્થકર ભગવાનને ઉપાધેિ છે કે નહિ ?, નથી. माणे “ न विद्यते” २॥ यानी पर्यायवाची या “ नास्ति' मतापीछे તે ઉત્તરવાકયના અર્થની દઢતા સમજાવવા માટે, અને અધ્યયનની સમાપ્તિ સૂચન ४२वा भाट. मथवा--" किमथि उवाहो पासगस्स न विज्जइ" मी सुधा प्रश्नवाय छ, मन 'नत्थि' २॥ उत्त२वाय छे. अर्थात सर्वज्ञ तीथ ४२ने 6पाधि है नहि ? मी सुधी शिष्या प्रश्न छ. शु३न! उत्तर छ-' नत्थि' नथी. ભાવાર્થ-કેવળી તીર્થકર ભગવાનને અષ્ટવિપકર્મપ ઉપાધિ નથી, અને કર્મજન્ય નરકાદિપર્યાયરૂપ ઉપાધિ પણ નથી. તે તે ઉપાધિથી નિર્મુક્ત છે. શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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