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________________ ___२६७ अध्य० २. उ. ५ किञ्च-पुत्रेभ्यः, दुहितृभ्यः पुत्रीभ्यः, स्नुषाभ्यः पुत्रवधूभ्यः, ज्ञातिभ्यः= पूर्वपश्चात्सम्बन्धिभ्यः, माता-पित-श्वश्रू-श्वशुरादिभ्य इत्यर्थः, स्वजनेभ्यः, धात्रीभ्यः उपमातृभ्यः, राजभ्यः, दासेभ्यः भृत्येभ्यः, दासीभ्यः, कर्मकरेभ्यः परिचारकेभ्यः, कर्मकरीभ्यः परिचारिकाभ्यः, आदिश्यते-आज्ञाप्यते परिजनः सत्कारार्थ यस्मिन्नागते स आदेशः माघूर्णकादिस्तस्मै, पृथकमहेणकाय' पृथक्-विभिन्नरूपेण प्रहेणका कस्मिंश्चिदुत्सवे भोजनोपायनं लोकेभ्यो दीयमानं पृथक्महेणक इत्युच्यते। कता ही नहीं है। सावद्य व्यापारों से हिंसा होने के कारण उस अवस्था में सर्वविरति संयम की आराधना हो ही नहीं सकती, इसलिये मुनि का संयम निर्दोष रीति से पल सके इस आशय से यह अवस्था परम्परा से की गई है। ___ मूल सूत्र में-" लोगस्स कम्मसमारंभा कज्जंति" यह पाठ है, इसकी संस्कृत छाया-“लोकाय कर्मसमारंभाः क्रियन्ते" होती है। जिसका अर्थ लोकों-असंयतों के लिये षट्काय के उपमर्दनरूप सावध व्यापारों का आरम्भ किया जाता है। अथवा लोक के द्वारा कर्मसमारम्भ किये जाते हैं, यह अर्थ भी होता है । पहिले सूत्रकार सावद्यव्यापाररूप कर्मसमारम्भ का निमित्त कारण सामान्यतया असंयत लोकों को बतलाते हुए इसी बात को विशेष रीति से खुलाशा करने के अभिप्राय से "तं जहा” इस पद से व्यक्त करते हैं। तथा “लोकों के द्वारा जो सावधव्यापाररूप कर्मसमारम्भ किया जाता है वह किस लिये किया जाता है" કારણે આ અવસ્થામાં સર્વવિરતિ સંયમની આરાધના બની જ શકતી નથી. માટે મુનિ સંયમને નિર્દોષ રીતિથી પાળી શકે એ આશયથી આ અવસ્થા પરંપરાથી કરવામાં આવેલ છે. भूगसूत्रमा-“ लोगस्स कम्मसमारंभा कज्जंति" मे ५४ छ. तेनी संस्कृत छाया-" लोकाय कर्मसमारंभाःक्रियन्ते" छ. रेनो म सा-मसयतोन માટે ષટ્કાયના ઉપમઈનરૂપ સાવદ્ય વ્યાપારને આરંભ કર્યો જાય છે, અથવા લેકદ્વારા કર્મસમારંભ કરાય છે. એ પણ અર્થ થાય છે. પહેલાં સૂત્રકાર સાવઘવ્યાપારરૂપ કર્મસમારંભના નિમિત્ત કારણ સામાન્યતયા અસંયત લેકેને मतावीन ते वातना विशेष शतिथी मुसासो ४२वाना मलिप्रायथी "तंजहा" આ પદથી સ્પષ્ટ કરે છે. તથા “લેકે દ્વારા જે સાવઘવ્યાપારરૂપ કર્મ સમારંભ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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