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________________ विषय पठाङ्क ६ प्रमादीको सबसे भय रहता है और अप्रमादीको किसी से भी नहीं !४७५-४७७ ७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र। ४७७-४७८ ८ जो एकका उपशम करता है वह बहुतका उपशम करता है; ___ जो बहुतका उपशम करता है वह एकका उपशम करता है। ४७८-४७९ ९ पांचवें मूत्रका अवतरण और पांचवां सूत्र । ४७९ १० धीर मुनि-षड्जीवनिकायलोकके दुःखकारण कर्मोंको जानकर, पुत्रकलत्रादि तथा हिरण्यसुवर्णादिकी ममता छोड़कर चारित्रको ग्रहण करते हैं और परसे पर जाते हैं, ऐसे मुनि अपने जीवन की अभिलाषा नहीं रखते हैं। ४८०-४८५ ११ छठे सूत्रका अवतरण और छठा सूत्र । ४८५ १२ एकका विवेचन करते हुए दूसरोका भी विवेचन करता है, दूसरोंका विवेचन करते हुए एकका भी विवेचन करता है। ४८६-४८७ १३ सातवें मूत्रका अवतरण और सातवां सूत्र । १४ मोक्षाभिलाषरूप श्रद्धावाला, जैनागमके अनुसार आचरण करता हुआ, मेधावी अप्रमत्त संयमी क्षपकश्रेणीको प्राप्त करता है। ४८७-४८८ १५ आठवें सूत्रका अवतरण और आठवां सूत्र । ४८८ १६ षड्जीवनिकायके स्वरूपको जिनोक्त प्रकारसे जानकर, जिससे षड्जीवनिकाय लोकको किसी प्रकारका भय न हो उस प्रकारसे संयमाराधन करे। ४८८-४८९ १७ नवम सूत्रका अवतरण और नवम सूत्र । १८ शस्त्र परसे पर है और अशस्त्र परसे पर नहीं है। ४८९-४९१ १९ दशम सूत्रका अवतरण और दशम सूत्र । ४९१ २० भावशस्त्र परसे पर होता है, अर्थात्-जो क्रोधदर्शी होता है __वह क्रमशः तिर्यग्दर्शी-निगोदभवसम्बन्धी दुःखोंको देखनेवाला होता है। ४९२-४९४ २१ ग्यारहवें सूत्रका अवतरण और ग्यारहवां सूत्र । ४९४ ४८९ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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