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________________ ६९८ आचाराङ्गसूत्रे समारम्भेण वायुकायोपमर्दनरूपसावधव्यापारण, इम-वायुकायं विहिनस्ति । तथावायुशस्त्रं समारभमाणः-व्यापारयन् , अन्यान् पृथिवीकायादीन् , अनेकरूपान् स्थावरांस्वसांश्च, प्राणान् माणिनः विहिनस्ति=उपमर्दयति ॥ मू० ४ ॥ वायुशस्त्रं समारभमाणा अनेकविधान् जीवान् कथं विहिंसन्ति, तत् च प्रतिबोधयितुं श्रीसुधर्मा स्वामी पाह-' से बेमि.' इत्यादि । से बेमि-संति संपाइमा पाणा आहच्च संपयंति य, फरिसं च खलु पुट्ठा एगे संघायमावज्जति । जे तत्थ संघायमावज्जंति, ते तत्थ परियावज्जंति । जे तत्थ परियावज्जति ते तत्थ उद्दायति ॥ सू० ५॥ छायातद् ब्रवीमि-संति संपातिमाः प्राणाः, आहत्य संपतन्ति च, स्पर्श च खलु स्पृष्टा एके संघातमापद्यन्ते । ये तत्र संघातमापद्यन्ते, ते तत्र पर्यापद्यन्ते । ये तत्र पर्यापद्यन्ते ते तत्रापद्रावन्ति ॥५॥ द्वारा वे वायुकाय का घात करते हैं। तथा वायुकाय के शस्त्रों का प्रयोग करते हुए पृथ्वीकाय आदि अनेक प्रकार के स्थावरों का, तथा त्रस जीवों का उपमर्दन करते हैं ।सू. ४॥ वायुकाय के शस्त्रों का प्रयोग करने वाले नाना प्रकार के जीवों की हिंसा कैसे करते हैं ? यह बतलाने के लिए श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं:-'से बेमि.' इत्यादि ।। मूलार्थ--वह मैं कहता हूँ-एकाएक उडकर पड़ने वाले जीव हैं जो अचानक आपडते हैं, और वायुकाय से स्पृष्ट होकर कोई-कोई संघात को प्राप्त होते हैं । जो संघात को प्राप्त होते हैं उनका शरीर सिकुड जाता है, मूर्छित हो जाते हैं, वे मर भी जाते हैं । सू० ५॥ ना વાયુકાયને ઘાત કરે છે. તથા વાયુકાયના અને પ્રવેગ કરતા થકા પૃથ્વીકાય माह मने प्रारना स्था। तथा सानु उपभहन (नाश) ४२ छ. ॥सू. ४॥ વાયુકાયના શસ્ત્રોના પ્રગ કરવાવાળા નાના પ્રકારના જીની હિંસા કેવી રીતે रे छ १ मे मता। भाटे श्री सुधर्मा स्वामी ४३ छ:-' से बेमि.' त्याहि. भूमाथ-ईते छु-मेमे (मार्थित) 802. ५७१७॥ ०१ छ. તે અચાનક આવી પડે છે, અને વાયુકાયથી સ્પષ્ટ થઈને કઈ-કઈ જથારૂપે થાય છે. જે સંઘાત-સમુદાય-જથારૂપમાં પ્રાપ્ત થાય છે, તેનું શરીર સંકેચાઈ જાય છે, भूछित थ य छ, भने त भरी ५४ लय छे. ॥ सू. ५ ॥ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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