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________________ ४७० आचारागसूत्रे शिवस्थानमिति - ऋजुः = विषमभावरहितत्वाद् दुष्प्रणिहितमनोवाकायनिरोधरूपः संयमः, स कृतः अनुष्ठितो येन स ऋजुकृतः-मनोवाकायजन्यसकलसावधक्रियानिवृत्त इत्यर्थः। यद्वा-संपूर्णसंवरस्वरूपसंयमेन संयमिना मोक्षस्थानगमनार्थ ऋजुगतिः प्राप्यते, तत्र ऋजुगतेः कारणं संयम इति कारणे कार्योपचारात्सप्तदशविधसंयमोऽपि ऋजुरित्युच्यते, स कृतः समाचरितो येनासौ ऋजुकृतः कृतसंपूर्णसंयमानुष्ठान इत्यर्थः। वाला ऋजु कहलता है । अथवा आत्मा को शाश्वत मोक्षस्थान पर पहुँचाने वाला ऋजु कहलाता है । अथवा ऋजु का अर्थ है-संयम । मन, वचन, काय के खोटे व्यापार को रोकनारूप संयम है । जिस ने एसा व्यापार रोक दिया है वह जुकृत कहलाता है। अर्थात् जो मन, वचन और काय से होने वाली समस्त सावद्य क्रियाओं से निवृत्त हो गया हो वह 'जुकृत' है। अथवा--सम्पूर्णसंवररूप संयम के द्वारा संयमी मोक्ष में गमन करने के लिए ऋजुगति प्राप्ति करता है । इस ऋजुगति का कारण संयम है । अतः कारण में कार्य का उपचार करने से सत्रह प्रकार का संयम भी 'ऋजु' कहलाता है । उस 'ऋजु' अर्थात् संयम का जिसने आचरण किया हो वह 'ऋजुकृत' कहलाता हैं । तात्पर्य यह है कि पूर्ण संयम का अनुष्ठान करने वाला ऋजुकृत है। વાળા કહેવાય છે. અથવા આત્માને શાશ્વત મોક્ષસ્થાન પર પહોંચાડવાવાળા ત્ર કહેવાય છે. અથવા ઋજુને અર્થ છે સંયમ–મન, વચન અને કાયના બેટા व्यापारने ॥४१॥ ३५ संयम छ. नए । व्यापार २४ी माया छे ते 'ऋजुकृत' કહેવાય છે. અર્થાત્ જે મન, વચન અને કાયાથી થવાવાળી સમસ્ત સાવદ્ય ક્રિયાએથી નિવૃત્ત થઈ ગયા હોય તે ગુર્જર છે. અથવા–સંપૂર્ણસંવરરૂપ સંયમ દ્વારા સંયમી મેક્ષમાં ગમન કરવા માટે અજુગતિ પ્રાપ્ત કરે છે. તે જુગતિનું કારણ સંયમ છે. તેથી કારણમાં કાર્યને रुपयार ४२वाथी सत्त२ (१७) प्रारना संयम ५ 'ऋजु' वाय छे. ते * सात सयभारो माय२५ युछे ते 'ऋजुकृत' उपाय छे. तात्पर्य ये छ । -संयमतुं मनुष्ठान ४२वा ऋजुकृत छे. શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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