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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य० १ उ. ३ सू. २ अनगारलक्षणम् ४७१ तथा नियागप्रतिपन्नः, नि-निश्चयेन यजति सम्यग्गमनं कुर्वन्ति यत्र स नियागः मोक्षमार्गः ज्ञानक्रियालक्षणः । यद्वा-नि-निश्चयेन यजति ददाति सिद्धिगतिमिति नियागः क्षान्त्यादिदशविधो यतिधर्मः, तं प्रतिपन्नः प्राप्तः । तथा ' अमायां कुर्वाणः' माया वीर्याचारसंगोपनं परवञ्चनं वा, न माया अमाया, तां कुर्वाणः अनगारो व्याख्याता भगवता कथितः।। अयं भावः-न केवलं पृथिवीशस्त्रसमारम्भमात्रनिवृत्त्याऽनगारो भवति किन्तु यः खलु पृथिवीशस्त्रसमारम्भनिवृत्तः परिज्ञातसकलसावधकर्मा निरव अब 'नियागप्रतिपन्न' शब्दका अर्थ करते हैं । 'नि' अर्थात् निश्चय से 'याग' अर्थात् सम्यक् गमन जहाँ किया जाता है उसे 'नियाग' या मोक्षमार्ग कहते है । ज्ञान और क्रिया मोक्ष का मार्ग है। ___ अथवा 'नि' अर्थात् निश्चय से 'याग' अर्थात् सिद्धिगति देने वाला क्षमा आदि दश प्रकार का यतिधर्म नियाग' कहलाता है, एसे नियाग को जो प्राप्त हो चुका हो वह नियागप्रतिपन्न है। तथा माया अर्थात् वीर्याचर का गोपन करना या दूसरे को गोखा देना माया है। इस माया का सेवन न करने वाला जो वही अनगार है, एसा भगवान् ने कहा है। __तात्पर्य यह है कि केवल पृथ्वीशस्त्र के आरंभ का त्याग कर देने मात्र से ही कोई अनगार नहीं हो जाता, वरन् जो पृथ्वीशस्त्र के आरंभ का त्याग कर के सकल वे 'नियागप्रतिपन्न' शन्नो अर्थ ४२ छ. 'नि' अर्थात् निश्चयथी 'याग' અર્થાત્ સમ્યક્રગમન જ્યાં કરવામાં આવે છે. તેને નિયાગ અથવા મેક્ષમાર્ગ કહે છે. ज्ञान अने या भाक्षी भाग छे. अथवा 'नि' अर्थात् निश्चयथी 'याग' अर्थात् सिद्धगति यावाणी क्षमा मा इस प्रश्न यतिधर्म नियाग' ४उपाय छे. એવા નિયાગને જે પ્રાપ્ત થઈ ચૂક્યા છે, તે નિજાતિવન છે. તથા માયા અર્થાત્ વિચરનું ગોપન કરવું અથવા બીજાને છે દેવે તે માયા છે. તે માયાનું સેવન નહિ કરવાવાળા જે હોય તે અણગાર છે. એ પ્રમાણે ભગવાને કહ્યું છે. તાત્પર્ય એ છે કે કેવલ પૃથ્વીશસ્ત્રના આરંભને ત્યાગ કરી દેવા માત્રથી જ કઈ અણગાર થતા નથી. પરંતુ જે પૃથ્વીશસ્ત્રના આરંભને ત્યાગ કરીને, સકલ સાવધ કર્મોને શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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