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NADAN
केश मुनि के चरणों को छू गये। सम्भूति मुनि का मन डोला। निदान किया कि साधना का फल मुझे भोग-वैभव-रूप में मिले। आयुष्य पूर्ण कर दोनों भाई देव बने। फिर सम्भूति कांपिल्यपुर नरेश ब्रह्म की रानी चुलनी के गर्भ से ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के रूप में जन्मे। चित्त पुरिमताल के श्रेष्ठी के घर पुत्र-रूप में जन्म लेकर मुनि बने। राजा ब्रह्मदत्त को नाटक देखते हुए जातिस्मरण ज्ञान हुआ। जाना कि चित्त गत पांच भवों के साथी हैं। उन्हें खोजने के लिए आधा श्लोक बनाकर घोषित किया कि जो इसे पूरा करेगा, आधा राज्य पायेगा। चित्त मुनि जब कांपिल्यपुर पधारे तो उन्होंने श्लोक पूरा किया। उनसे राजा ब्रह्मदत्त ने राज-भोग भोगने की प्रार्थना की। मुनि श्री ने उन्हें सम्यक् मार्ग पर आने की प्रेरणा दी पर वे नहीं समझे। दोनों अपने-अपने ढंग से जीते रहे। मुनिराज आयुष्य पूर्ण कर मोक्ष और राजा सप्तम् नरक में गये। सचमुच! विषयासक्ति चरम विनाश और सम्यक् साधना परम मंगल है।
(अध्ययन-13) इषूकार नगर की छह वन्दनीय आत्मायें
इषुकार नगर के समृद्ध राजपुरोहित भृगु व उनकी पत्नी यशा संतानहीन थे। दो देवों ने श्रमण-रूप में आकर उन्हें बताया कि उनके दो पुत्र होंगे जो बाल-अवस्था में मुनि बन जायेंगे। यथा समय पुत्रों का जन्म हुआ। पुत्रों के बड़ा होने पर भृगु ने उन्हें कहा कि मुनि लोग झोली में शस्त्र रखते हैं। बच्चों को मारते हैं। उनसे दूर रहना। एक बार दोनों पुत्र जंगल में गये। उन्होंने दूर से मुनि देखे। वे डर कर पेड़ पर चढ़ गये। पेड़ के नीचे ही मुनि आ ठहरे। बच्चों ने देखा कि मुनि चींटियों तक को बचा रहे हैं। चिंतन गतिशील होने पर उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हुआ। उन्होंने जाना कि वे स्वयं भी मुनि थे। फिर देव बने। फिर भृगु व यशा के पुत्र। शिवभद्र व यशोभद्र नामक दोनों कुमारों ने मुनि-दीक्षा का संकल्प किया। माता-पिता ने उन्हें रोकने का प्रयास किया किन्तु बालक अविचल रहे। अन्ततः भृगु व यशा ने भी दीक्षा संकल्प किया। अपनी सारी सम्पत्ति राज-कोश हेतु भेज दी। सम्पत्ति देख रानी कमलावती को वैराग्य हुआ। उसने सोचा-जब पुरोहित व उसका परिवार दीक्षा ले रहा है तो हम ही भोगों में क्यों फंसे रहें! फिर रानी
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