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________________ को मारा। उनके मुख से रक्त बहने लगा। रक्त-वमन करते हुए उन्होंने क्षमा मांगी। ब्राह्मण स्वस्थ हुए। राजकुमारी ने मुनिराज का प्रभा-परिचय वहां आकर सभी को दिया। आहार हेतु प्रार्थना की। भिक्षा ग्रहण कर मुनि चले गये। निरन्तर साधना से उन्होंने कैवल्य व मुक्ति पाई। सचमुच! जाति व रूप से कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। परम पद के अधिकारी सभी हैं। (अध्ययन-12) विषयासक्ति और सम्यक् साधना चित्त व सम्भूति वाराणसी के समृद्ध चाण्डाल भूतदत्त के पुत्र थे। राजा शंख ने मंत्री नमुचि को अपनी रानी पर कुदृष्टि रखने के कारण प्राण-दण्ड सुनाया। यह दायित्व उसने भूतदत्त को सौंपा। वध-स्थल पर पहुंचकर नमुचि ने भूतदत्त से उसके पुत्रों को पढ़ाने का प्रस्ताव रखा तथा उसे प्राण दण्ड न देने को कहा। भूतदत्त ने प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया। तब नमुचि तलघर में रहते हुए चित्त-सम्भूति को विद्याअध्ययन कराने लगा। दोनों अध्ययन में आगे बढ़ने लगे। कालान्तर में नमुचि चाण्डाल-पत्नी पर कुदृष्टि रखने लगा। भूतदत्त को पता लगा तो उसने नमुचि को पुनः प्राण-दण्ड देने की सोची। तब नमुचि को चित्त-सम्भूति ने सुरक्षित भगा दिया। आगे जाकर वह हस्तिनापुर के राजा सनत्कुमार का मंत्री बन गया। राज्य में वसन्तोत्सव था। चित्तसम्भति ने अपनी गायन-प्रतिभा की धाक जमा दी तो जाति-द्वेषियों ने दोनों को अपमानित किया। दोनों ने वेश बदल कर पुनः सबको आकर्षित किया। भेद खुलने पर उन्हें इस बार मारा-पीटा भी गया। दोनों आत्महत्या करने पर्वत-शिखर पर गये तो एक मुनि से मानव-भव का महत्त्व जान कर दीक्षा ले ली। कठोर साधना से अनेक लब्धियां पाईं। विचरते हुए दोनों मुनि हस्तिनापुर पहुंचे। वहां भिक्षार्थ जाते हुए सम्भूति मुनि को नमुचि ने पहचानकर उन्हें प्रताड़ित करवाया ताकि वे उसका भेद न खोल दें। मुनि ने समता से प्रताड़ना सही किन्तु प्रताड़ना बढ़ती गई तो तेजोलेश्या छोड़कर उन्होंने नगर को दग्ध कर दिया। राजा-रानी सहित सभी ने क्षमा मांगी। चित्त मुनि ने भी समझाया तो उनका क्रोध शान्त हुआ। राजा-रानी चरणों में गिरे। रानी के स्निग्ध परिशिष्ट ८५५
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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