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________________ ने राजा को समझाया। रानी की सम्यक् वार्ता से राजा इषुकार को वैराग्य हुआ। एक साथ छहों भव्य आत्माओं ने अभिनिष्क्रमण किया। दीक्षा ली। साधना की। छहों सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए। सचमुच! सारी सम्पत्ति, सारे सम्बन्ध और सारे सुख-भोग आत्मा के लिए पराये होते हैं। (अध्ययन-14) संजय राजर्षि __काम्पिल्य नगर के राजा थे संजय। एक बार वे केसर नामक वन में शिकार खेलने गये। एक मृग को राजा ने बाण मारा और उसका पीछा करते-करते वे श्रमण-श्रेष्ठ ध्यानलीन गर्धभाली मुनि के पास पहुंचे। मृग ने वहां दम तोड़ दिया। राजा यह सोचकर कि मृग मुनिराज के हैं, मुनि-श्राप से भयभीत हो गये। मुनिराज का ध्यान पूर्ण होने पर राजा ने क्षमा व अभय देने की प्रार्थना की। मुनिराज ने सम्यक् पथ उन्हें दिखाया। उन्होंने दीक्षा ली। एक बार संजय राजर्षि को क्षत्रिय मुनि मिले। उन दोनों में परस्पर ज्ञान की गम्भीर वार्तायें हुईं। क्षत्रिय मुनि प्रभावित हुए। संजय राजर्षि ने साधना की। निज-पर कल्याण किया। सचमुच! सम्बोधि-प्राप्ति से हिंसक, अहिंसक और उन्मार्गी, दूसरों को भी सन्मार्ग पर लाने वाले बन जाते हैं। (अध्ययन-18) भरत चक्रवर्ती वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के प्रथम पुत्र व बारह चक्रवर्तियों में प्रथम चक्रवर्ती सम्राट् थे भरत। उन्हीं के नाम पर यह देश भारत कहलाया। सम्पूर्ण भरत क्षेत्र पर उनका स्वामित्व था। चौदह रत्न व नव निधियां उन्हें समृद्ध करती थीं। अपार ऐश्वर्य के स्वामी भरत को एक बार तीन शुभ संवाद एक साथ मिले। उन्होंने आयुधशाला में चक्र-रत्न अवतरित होने व पुत्र-रत्न प्राप्त होने के समारोह बाद में और भगवान् ऋषभदेव के केवल ज्ञान का महोत्सव पहले मनाया। एक दिन शीशमहल में अपने सौन्दर्य पर मुग्ध होते हुए उन्होंने देखा कि अंगूठी कहीं गिर जाने के कारण एक उंगली श्री-हीन हो गई है। एक-एक कर सारे आभूषण उन्होंने उतार डाले और पाया परिशिष्ट ८५७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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