________________
१८. (वहां वे) उस काम स्कन्ध के अतिरिक्त, (२) सन्मित्रों से युक्त,
(३) ज्ञातिमान् (अच्छी विनीत जाति वाले), (४) उच्चगोत्रीय, (५) सुन्दरवर्ण वाले, (६) रोग-रहित, (७) महाप्रज्ञ (मेधावी), (८) अभिजात-सत्कुलीन, (E) यशस्वी एवं (१०) बलशाली होते हैं।
१६.(अपनी) आयु-पर्यन्त मानवीय भोगों का उपभोग करने के बाद भी,
पूर्व समय (जन्म) में विशुद्ध सद्धर्म के आराधक होने के कारण, विशुद्ध बोधि का अनुभव करते हैं।
२०. (पूर्व वर्णित) चार अंगों को दुर्लभ समझ कर (साधक) 'संयम'
को अंगीकार कर, तप द्वारा कर्मों के समस्त अंशों को धुन कर शाश्वत 'सिद्ध' (अवस्था को प्राप्त) हो जाता है। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-३