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________________ LEES १७१. उन दोनों को भी तीन-तीन प्रकार का जानना चाहिए: (१) जलचर, (२) स्थलचर, और (३).खेचर । (अब) उनके भेदों को मुझसे सुनो। १७२.जलचर पांच प्रकार के हैं- (१) मत्स्य (मछलियां), (२) कच्छप (कछुए), (३) ग्राह (घड़ियाल), (४) मकर (मगरमच्छ), और (५) सुंसुमार। १७३. वे सब (जलचर आदि) (लोक में) सर्वत्र नहीं, (अपितु) लोक के एकदेश (भाग) में (ही अवस्थित) कहे गये हैं। इसके बाद, मैं उनके चार प्रकार के काल-विभाग (काल की अपेक्षा से भेदों) का कथन करूंगा। १७४.वे (जलचर जीव) 'सन्तति' (प्रवाह-परम्परा) की दृष्टि से अनादि और अनन्त हैं, (किन्तु एकत्व-वैयक्तिक) 'स्थिति' की दृष्टि से सादि और सान्त (भी) हैं। १७५.जलचरों की (एकभवीय) आयु- स्थिति उत्कृष्टतः एक करोड़ 'पूर्व' की, तथा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की होती है। १७६.जलचरों की काय-स्थिति उत्कृष्टतः ‘पृथक्त्व' करोड़ पूर्व की होती है (अर्थात् अपने प्रथम जलचर-भव के बाद, अधिक से अधिक करोड़-करोड़ पूर्व के आठ भव और ग्रहण किये जा सकते हैं), तथा जघन्यतः (कायस्थिति) अन्तर्मुहूर्त की होती है। अध्ययन-३६ ८१७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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