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________________ पैंतीसवां अध्ययन : अनगार-मार्ग-गति १. बुद्धों (सर्वज्ञों/जिनेन्द्रों) द्वारा उपदिष्ट उस मार्ग (से सम्बन्धित निरूपण) को मुझ से एकाग्रचित्त होकर सुनो, जिसका आचरण करते हुए भिक्षु (समस्त) दुःखों का अन्त करने वाला हो जाता २. गृहवास को त्याग कर, प्रव्रज्या का आश्रयण (अंगीकार) कर लेने वाला मुनि इन (माता-पिता पुत्र, कलत्र आदि) 'संगों' को (विशेषतः संसार-हेतु के रूप में) जाने, जिनके कारण मनुष्य आसक्त/लिप्त (तथा ज्ञानावरणीय आदि कर्मों से बद्ध) होते हैं । ३. इसी तरह, संयमी (मुनि) हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य-सेवन, इच्छा-काम (अप्राप्त वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा) व लोभ (प्राप्त वस्तु में आसक्ति व ममत्व) का सर्वथा परित्याग करे । ४. (संयमी मुनि) मन को लुभाने वाले, चित्रों से सुशोभित, पुष्प मालाओं व धूप (अगर, चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों) से सुवासित, किवाड़ों वाले, सफेद वस्त्र (आदि) के चंदोवे से सुसज्जित (घर/स्थान) की मन से भी प्रार्थना (इच्छा) न करे । ५. (क्योंकि) काम-राग (विषय-अनुराग) को बढ़ाने वाले वैसे उपाश्रय में भिक्षु के लिए इन्द्रियों का निग्रह (संयम) रखना दुष्कर (कार्य) हो जाता है। अध्ययन-३५ ७५१
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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