________________
५२. (भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क तथा सौधर्म व ईशान स्वर्ग के
वैमानिक देवों में) तेजो (लेश्या) की जघन्य (स्थिति) एक पल्योपम की होती है और उत्कृष्ट (स्थिति) पल्योपम के असंख्यातवां भाग अधिक दो सागरोपम की होती है। (अन्य देवों के विषय में शास्त्रों से जानना चाहिए)।
५३. (भवनपति व व्यन्तर देवों में) तेजो (लेश्या) की जघन्य स्थिति
दस हजार वर्ष की होती है, और उत्कृष्ट (स्थिति) पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक दो सागरोपम की होती है।
५४. (सनत्कुमार नामक तीसरे वैमानिक देवों में) तेजो (लेश्या) की
जो उत्कृष्ट स्थिति है, उसमें एक समय अधिक (काल-मान ही) पद्म (लेश्या) की जघन्य (स्थिति) है, और (पांचवें वैमानिक निकाय-ब्रह्मलोक के देवों में) उत्कृष्ट (स्थिति) तो एक मुहूर्त (अन्तर्मुहूर्त) अधिक दस सागरोपम की होती है। पद्म (लेश्या) की जो उत्कृष्ट स्थिति है, एक समय अधिक होकर वही (अर्थात् एक समय अधिक दस सागरोपम की स्थिति, लान्तक देवलोक में) शुक्ल (लेश्या) की जघन्य स्थिति होती है, और (शुक्ल लेश्या की) उत्कृष्ट (स्थिति) एक मुहूर्त (अन्तर्मुहूर्त) अधिक तैंतीस सागरोपम की होती है। कृष्ण लेश्या, नील लेश्या व कापोत लेश्या-ये तीन अधर्म (की हेतु अप्रशस्त) लेश्याएं हैं, इन तीनों (लेश्याओं) से जीव अनेकों बार (नरक आदि) दुर्गति को प्राप्त करता है (इनमें उत्पन्न होता
५७. (उक्त छ: लेश्याओं में) तेजोलेश्या, पद्म लेश्या, शुक्ल लेश्या
ये तीनों ही धर्म (की हेतु प्रशस्त) लेश्याएं हैं। इन्हीं तीनों (में से किसी भी एक लेश्या) से जीव (देव आदि) सुगतियों को अनेक
बार प्राप्त करता है (इनमें उत्पन्न होता है)। अध्ययन-३४
७४३