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________________ १७. केवलदर्शनावरणीय- इन्द्रिय व मन की सहायता के बिना, रूपी-अरूपी समस्त द्रव्यों के त्रैकालिक सामान्यात्मक स्वरूप का बोध ‘केवल दर्शन' है, उसे रोकने वाला केवल दर्शनावरणीय कर्म कहा गया है। १८. दर्शनमोहनीय- तत्वार्थ श्रद्धान या तत्वाभिरुचि रूप आत्म-गुण 'दर्शन' का घात (विनाश) करने वाला कर्म दर्शन मोहनीय कर्म होता है। १६. चारित्रमोहनीय- आत्मा के शुद्ध स्वरूप 'चारित्र' का घात करने वाला यह चारित्र मोहनीय कर्म है। २०. सम्यक्त्वमोहनीय- मोहनीय कर्म के पुद्गलों का शुद्ध अंश-शुद्ध दलिक-जिसके उदय से सम्यक्त्व का आच्छादन होते हुए भी, सम्यक्त्व में बाधा नहीं होती, अपितु सम्यक्त्व में कुछ सहायता ही मिलती है। किन्तु 'मोहनीयता' के कारण सम्यक्त्व में कुछ मलिनता एवं संशयादि दोषों की सम्भावना रहती है। २१. मिथ्यात्व-मोहनीय- मोहनीय कर्म के पुद्गलों का अशुद्ध अंश-अशुद्ध दलिक, जिसके उदय से अतत्व में तत्व बुद्धि आदि रूप मिथ्यात्व होता है। २२. सम्यक् मिथ्यात्व मोहनीय-मोहनीय कर्म के पुद्गलों का शुद्ध-अशुद्ध मिश्रित रूप-शुद्धाशुद्ध दलिक, जिसके उदय से जीव को मिश्रित श्रद्धान होता है। २३. कषाय मोहनीय- क्रोध आदि कषायों के रूप में वेदन (अनुभव) किये जाने वाला मोहनीय कर्म। २४. नोकषायमोहनीय- कषायों को उत्तेजित करने वाले या कषायों के सहवर्ती-हास्य, शोक आदि 'नो-कषायों' (ईषत्कषायों) के रूप में वेदन (अनुभव) किया जाने वाला मोहनीय कर्म। २५. कषायमोहनीय- क्रोध, मान, माया व लोभ-ये चार मूल कषाय हैं। इनमें से प्रत्येक के अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान व संज्वलन- ये चार-चार भेद हो जाते हैं। अतः कुल मिला कर इनके सोलह भेद होते हैं, इनसे सम्बन्धित 'कषाय मोहनीय' के भी १६ भेद हो जाते हैं। अनन्तानबन्धी कषाय वह है जो जीवात्मा को अनन्त काल तक इस संसार में परिभ्रमण कराता है। अप्रत्याख्यानावरण कषाय वह है जो जीवात्मा को देशविरति रूप अल्पप्रत्याख्यान की प्राप्ति नहीं होने देता। प्रत्याख्यानावरण कषाय के कारण जीवात्मा ‘सर्वविरति' रूप प्रत्याख्यान (मुनि-धर्म) को प्राप्त नहीं कर पाता। संज्वलन कषाय अल्पतम प्रभावी सूक्ष्म कषाय है जिससे यद्यपि सर्वविरति रूप मुनि-धर्म के पालन में तो कोई बाधा नहीं पहुंचती, किन्तु उच्च साधना-सोपान में 'यथाख्यात चारित्र' व 'केवल ज्ञान की प्राप्ति में इससे बाधा पहुंचती है। अध्ययन-३३ ७१७ ( DELHOME
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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