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________________ ५. आयु कर्म- आत्मा के (नरक, तिर्यंच, मनुष्य व देव-इन चार गतियों में) प्राण-धारण की स्थिति - काल को निष्पन्न/नियमित करने वाला कर्म । इसकी तुलना कारागार से तथा पांव की बेड़ी से की गई है। ६. नाम कर्म- प्रत्येक जीव के पृथक् पृथक् शरीर, मन आदि की रचना द्वारा, उसकी शारीरिक विशेषता में कारणभूत कर्म । इसकी तुलना चित्रकार से की गई है। ७. गोत्र कर्म- उच्च/नीच संस्कारों से युक्त, तथा सामाजिक प्रतिष्ठा/अप्रतिष्ठा के मानदण्ड समझे जाने वाले या पूज्यता/ अपूज्यता के कारण उत्तम अधम, प्रशस्त निकृष्ट, अधिक/हीन ऐश्वर्य, लाभ, बल, तप, जाति आदि से युक्त वातावरण में उत्पत्ति कराने वाला कर्म। इसकी तुलना कुम्हार से की गई है। ८. अन्तराय कर्म- बाह्य सामग्री के उपस्थित होने पर भी, आत्मिक शक्ति के विकास में, तथा अभीष्ट प्राप्ति में विघ्न उपस्थित कर दान, लाभ, भोग, उपभोग व सामर्थ्य में बाधक बनने वाला कर्म । इसकी तुलना राजा के कोषाध्यक्ष से की गई है। ६. निद्रा- ऐसी सामान्य नींद-जिसमें थोड़ी-सी आवाज/आहट होने से मनुष्य जाग जाता है। १०. प्रचला- खड़े-खड़े या बैठे-बैठे भी व्यक्ति सो जाए-ऐसी निद्रा 'प्रचला' कहलाती है। ११. निद्रा-निद्रा-निद्रित व्यक्ति कठिनता से जागे-ऐसी प्रगाढ़ निद्रा । १२. प्रचला-प्रचला-चलते-फिरते भी व्यक्ति को निद्रा आती रहे। १३. स्त्यान गृद्धि- दिन में या रात में सोचे विचारे हुए सम्भव/ अतिकठिन कार्य को निद्रा की अवस्था में कर देने वाली निद्रा 'स्त्यान गृद्धि' है। इसमें व्यक्ति को वासुदेव का आधा बल हो जाता है। यह निद्रा अत्यन्त निकृष्ट मानी गई है, क्योंकि राग-द्वेष की अत्यन्त बहुलता वाले जीव में ही इस निद्रा का आवेश होता है, और इस निद्रा वाला जीव अवश्य नरकगामी होता है। १४ चक्षदर्शनावरणीय-वस्त के सामान्यसत्तात्मक स्वरूप का आंख द्वारा ग्रहण 'चक्षदर्शन' कहलाता है, उसे रोकने वाला चक्षुर्दर्शनावरणीय कर्म होता है। १५. अचक्षुर्दर्शनावरणीय- आंख से अतिरिक्त इन्द्रियों व मन द्वारा वस्तु के सामान्यसत्तात्मक स्वरूप का ग्रहण 'अचक्षुर्दर्शन' कहलाता है, उसे रोकने वाला अचक्षुर्दर्शनावरणीय कर्म होता है। १६. अवधि-दर्शनावरणीय- इन्द्रिय व मन की सहायता के बिना-'रूपी' पदार्थों के सामान्य सत्तात्मक स्वरूप का बोध 'अवधिदर्शन' कहलाता है, उसे रोकने वाले कर्म को अवधिदर्शनावरणीय कर्म कहते हैं। ७१६ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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