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११०. जो इस (विषयासक्त) प्राणी को निरन्तर पीड़ित करता रहता है, उस
समस्त (शारीरिक व मानसिक) दुःखों से वह मुक्त हो चुका होता है। तदनन्तर, (वह) दीर्घकालीन (जन्म-मरण आदि) रोगों से (सर्वथा) विमुक्त एवं प्रशंसा का पात्र होता हुआ, ‘कृतकृत्य' एवं अत्यन्त (निराबाध,
अलौकिक, अनन्त व पूर्ण) सुख से युक्त हो जाता है। १११. अनादि काल से चले आ रहे समस्त दुःखों से (सर्वथा) मुक्त
हो जाने का यह मार्ग निरूपित किया गया है, जिसे सम्यक् प्रकार से अंगीकार कर, जीव क्रमशः अत्यन्त (अनन्त) सुख से युक्त हो जाते हैं। - ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-३२
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