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________________ २०. सत्ताईस अनगार-गुण इस प्रकार हैं- (१-५) पांच महाव्रत, (६-१०) पांच इन्द्रिय-निग्रह, (११-१४) चार कषायों पर विजय, (१५-१७) भावसत्य, करण सत्य, योग सत्य, (१८) क्षमा, (१६) वैराग्य, (२०) मनः समाधारणता (मन की शुभ प्रवृत्ति), (२१) वचन समाधारणता, (२२) काय समाधारणता, (२३) ज्ञान-सम्पन्नता, (२४) दर्शन-सम्पन्नता, (२५) चारित्र-सम्पन्नता, (२६) वेदना सहिष्णुता, तथा (२७) मारणान्तिक कष्ट-अधिसहन । २१. आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययन, द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययन, तथा आचारांग-चूला के रूप में स्वीकृत 'निशीथ' के उद्घात, अनुद्घात व विमुक्ति-ये तीन अध्ययन, इन्हें मिलाकर कल अट्ठाईस अध्ययन 'प्रकल्प' के अन्तर्गत यहां परिगणित हैं। २२. अध्येता के मन में पाप-कर्म में रुचि पैदा करने वाले 'पापश्रुतों, की संख्या उनतीस वर्णित की गई है:- (१) भूमि -कम्प (भूकम्प व भूगर्भ-सम्बन्धी शास्त्र), (२) उत्पात (रुधिर-वर्षा आदि अशुभ व शुभ फलों का सूचक शास्त्र), (३) स्वप्नशास्त्र, (४) अन्तरिक्ष विज्ञान, (५) अंग शास्त्र, (६) स्वर शास्त्र, (७) व्यंजन (शारीरिक चिन्हों की शुभाशुभता का निरूपक शास्त्र), (८) लक्षण शास्त्र-इन आठों के सूत्र (मूल), वृत्ति, वार्तिक-ये तीन भेद मान कर कुल २४ पापश्रुत हुए। इनमें निम्नलिखित पांच और जोड़ने पर उनतीस होती है(२५) विकथानुयोग, (२६) विद्यानुयोग, (२७) मंत्रानुयोग, (२८) योगानुयोग (वशीकरण आदि योगों से सम्बन्धित शास्त्र), (२६) अन्यतीर्थिक अनुयोग (अन्य मतों के हिंसा-प्रधान शास्त्र) । २३. महामोहनीय कर्म को बांधने वाले तथा दरध्यवसाय की तीव्रता व करता से पूर्ण तीस प्रकार के मोहस्थान इस प्रकार हैं- (१) त्रस जीवों को पानी में डुबा कर मारना, (२) त्रस जीवों को श्वास आदि रोक कर मारना, (३) त्रस जीवों को मकान आदि में बन्द कर, धुएं से दम घोट कर मारना, (४) त्रस जीवों को मस्तक पर गीला चमड़ा आदि बांधकर मारना, (५) त्रस जीवों को मस्तक पर डण्डे व घातक शस्त्रों से मारना, (६) राहगीरों को धोखा देकर लूटना, (७) गुप्त रूप से अनाचार-सेवन (८) स्वकृत-महादोष का आरोप दूसरे पर लगाना, (E) सभा में यथार्थ सत्य को जान-बूझ कर छिपाना, मिश्र भाषण-सत्य-समान असत्य बोलना, (१०) अपने अधिकारी या शासक को अधिकार प्रभाव व भोग-सामग्री से वंचित करना, (११) बाल-ब्रह्मचारी न होते हुए भी स्वयं को बाल-ब्रह्मचारी कहना, (१२) आश्रयदाता के धनादि का हरण, (१३) ब्रह्मचारी न होते हुए भी ब्रह्मचारी होने का ढोंग करना, (१४) अन्य के उपकार को न मानना, कृतघ्नता, उपकारी के भोगों का विच्छेद करना, (१५) पोषक गृहपति, संघपति, सेनापति या प्रशास्ता का वध करना, (१६) राष्ट्रनेता, प्रसिद्ध/मुखिया व श्रेष्ठी की हत्या, (१७) जनता व समाज के लिए आश्रय-स्थान जैसे विशिष्ट-परोपकारी का वध (१८) संयम करने वाले मुमुक्षु को व दीक्षित-मुनि को संयम भ्रष्ट करना, (१६) अनन्तज्ञानियों की निन्दा करके उनकी उपासना का त्याग, सर्वज्ञता के प्रति अश्रद्धा करना, (२०) आचार्य, उपाध्याय व जिनेन्द्र आदि की अवमानना व निन्दा करना, (२१) अहिंसा आदि मोक्ष-मार्ग की निन्दा करके, जनता को मोक्षमार्ग-विमुख करना । (२२) संघ में विघटन, पुनः पुनः क्लेश पैदा करना, (२३) बहुश्रुत न होते हुए भी बहुश्रुत कहलाना, (२४) तपस्वी न होते हुए भी, स्वयं को तपस्वी कहना, (२५) शक्ति होते हुए अध्ययन-३१ ६४६
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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