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(सूर्योदय से सूर्यास्त तक खाते-पीते रहना), (२०) एषणा-असमितत्व (एषणा-समिति
का पालन न करते हुए भिक्षा-ग्रहण)। १६. शबल-दोषों (चरित्र को मलिन करने वाले कार्यों) के इक्कीस भेद इस प्रकार हैं:
(१) हस्तकर्म, (२) मैथुन, (३) रात्रि भोजन, (४) आधाकर्म आहार, (५) सागारिक पिण्ड (शय्यातर का आहार लेना), (६) औद्देशिक (साधु के निमित्त आहार का ग्रहण), (७) प्रत्याख्यान-भंग, (८) गण-परिवर्तन (छ: मास के भीतर एक गण से दूसरे गण में चले जाना). (E) उदक लेप. (मास में तीन बार. जंघाप्रमाण जल में प्रवेश करते हुए नदी को पार करना), (१०) माया-स्थान (महीने में तीन बार माया-स्थानों का सेवन), (११) राजपिण्ड, (१२) जान बूझ कर हिंसा करना, (१३) जान बूझ कर असत्य बोलना, (१४) जान बूझ कर चोरी करना, (१५) सचित्त पृथ्वी-स्पर्श, (१६) सस्निग्ध-सचित्त रजवाली पृथ्वी शिला व सजीव लकड़ी आदि पर शयन-आसन आदि), (१७) जीव -प्रतिष्ठित प्राणी, बीज, हरित निगोद व सचित्त पानी वाले स्थान पर खड़े होना, बैठना आदि । (१८) जान-बूझकर कन्दमूल आदि का सेवन, (१६) वर्ष में दस बार उदक लेप (नदी पार करना आदि). (२०) वर्ष में दस बार माया-स्थानों का सेवन, (२१ जान बझकर सचित्त
जल से युक्त हाथों व कड़छी आदि पात्रों से प्रदत्त आहार का ग्रहण ।। १७. बाईस परीषहों का वर्णन उत्तराध्ययन के दूसरे अध्ययन में किया जा चुका है। १८. देव गति के प्राणियों के २४ भेद इस प्रकार हैं-दस प्रकार के भवनपति, आठ प्रकार के . व्यन्तर, पांच प्रकार के ज्योतिष्क, तथा वैमानिक देव- इस प्रकार कुल २४ प्रकार होते हैं। १६. अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह- इन पांच महाव्रतों में प्रत्येक की ५-५
भावनाएं होती हैं, इस तरह भावनाओं की कुल संख्या पच्चीस हो जाती है। इनके नाम हैं- (अहिंसा महाव्रत की भावनाएं-) (१) ईर्यासमिति, (२) आलोकित पानभोजन, या एषणा समिति, (३) आदाननिक्षेप समिति, या काय-समिति, (४) मनोगुप्ति, (५) वचन-समिति, (सत्य महाव्रत की भावनाएं-) (६) अनुविचिन्त्य भाषण, (७) क्रोध-विवेक, (८) लोभविवेक, (E) भयविवेक (१०) हास्य-विवेक, (अस्तेय महाव्रत की भावनाएं-) (११) अवग्रह-अनुज्ञापना (या निर्दोष वसति-सेवन), (१२) अवग्रह सीमा-परिज्ञानता, (१३) अवग्रह-अनुग्रहणता (अवग्रह-स्थित तृण, पट्ट आदि के लिए पुनः अवग्रह-स्वामी की आज्ञा लेकर ग्रहण करना), (१४) गुरुजनों तथा अन्य साधर्मिकों से भोजनानुज्ञा प्राप्त करना, या समविभाग करना, (१५) साधर्मिकों से अवग्रह-अनुज्ञा प्राप्त करना (या तपस्वी आदि की सेवा करना), (ब्रह्मचर्य व्रत की भावनाएं) (१६) स्त्रीविषयक चर्चा-त्याग, (१७) स्त्रियों के अंगोपांगादि के अवलोकन का त्याग, (१८) अतिमात्रा में प्रणीत पान-भोजन का त्याग, (१६) पूर्वभुक्त भोग-स्मृति का त्याग, (२०) स्त्री आदि से संसक्त शयन-आसन आदि का त्याग, (अपरिग्रह महाव्रत की भावनाएं-) (२१) से (२५)- पांचों इन्द्रियों के मनोज्ञ शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श पर राग भाव का, तथा अमनोज्ञ शब्द आदि पर द्वेष का त्याग ।
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उत्तराध्ययन सूत्र