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५. सात भय-स्थान इस प्रकार हैं- (१) इहलोक भय (स्वजातीय प्राणियों से भय), (२) परलोकभय (अन्य जाति के प्राणियों से भय), (३) आदान-भय (चोरी आदि से धन-नाश का भय), (४) अकस्मात् भय (अकारण, स्वयं सशंक होकर भय उत्पन्न होना), (५) आजीव-भय (जीवन-निर्वाह हेतु भोजनादि सामग्री के न मिलने की आशंका से होने वाला, या पीड़ा के दुर्विकल्प-वश उत्पन्न भय), (६) मरण-भय (मृत्यु-भय), (७) अपयश की आशंका से उत्पन्न भय । ६. ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियों का वर्णन उत्तराध्ययन के १६/१-६ में पहले किया जा चुका है । नौ गुप्तियां हैं- (१) विविक्तवसति सेवन, (२) स्त्री-कथात्याग, (३) निषद्या-अनुपवेशन, (४) स्त्री-अंगोपांग-अदर्शन, (५) कुड्यान्तर शब्द श्रवण-त्याग, (६) पूर्वभोग-स्मरण त्याग, (७) प्रणीत भोजन-त्याग, (८) अतिमात्र भोजन-त्याग, और (६) विभूषा-त्याग ।
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दस प्रकार के भिक्षु-धर्म हैं- (१) क्षमा, (२) मुक्ति (निर्लोभता), (३) आर्जव, (४) मार्दव, (५) लाघव, (६) सत्य, (७) संयम (८) तप, (६) त्याग, (१०) ब्रह्मचर्य- (या आकिंचन्य) । अथवा क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य व ब्रह्मचर्य- इस प्रकार से भी दस संख्या परिगणित की गई है।
ग्यारह उपासक-प्रतिमाएं इस प्रकार हैं- (१) दर्शन-प्रतिमा (सम्यक्त्व का पालन, उत्कृष्ट अवधि एक मास), (२) व्रत प्रतिमा (व्रतों का धारण, उत्कृष्ट अवधि दो मास), (३) सामायिक प्रतिमा (काल में प्रतिक्रमण आदि करना उत्कृष्ट अवधि तीन मास), (४) प्रौषध प्रतिमा (विशेष तिथियों में प्रोषध-उपवास करना, उत्कृष्ट अवधि चार मास), (५) नियम प्रतिमा (रात्रि में कायोत्सर्ग करना, स्नान-त्याग व धोती आदि की लांग न बांधना, जघन्य अवधि १-२ दिन, उत्कृष्ट अवधि-पांच मास), (६) ब्रह्मचर्य-प्रतिमा (ब्रह्मचर्य धारण करना, उत्कृष्ट अवधि-छः मास), (७) सचित्त त्याग प्रतिमा (सचित्त आहार का त्याग करना, उत्कृष्ट अवधि-सात मास), (८) आरम्भ-त्याग-प्रतिमा (स्वयं आरम्भ-हिंसादि न करना, उत्कृष्ट अवधि- आठ मास), (६) प्रेष्यत्याग प्रतिमा (दूसरों से आरम्भ न करवाना, उत्कृष्ट अवधि-नौ मास), (१०) उद्दिष्ट-भक्त त्याग प्रतिमा (उद्दिष्ट आहार का त्याग करना, उत्कृष्ट अवधि दस मास) (११) श्रमण भूत प्रतिमा (साधु के समान वेष व बाहूय आचार का पालन करना उत्कृष्ट अवधि ग्यारह मास)।
६. बारह भिक्षु-प्रतिमाएं इस प्रकार हैं- एक मास से लेकर सात मास तक सात प्रतिमाएं (अर्थात् एक-एक मास की सात मास पर्यन्त सात प्रतिमाएं), इसके आगे सात-सात अहोरात्र की आठवीं, नौवीं व दसवीं प्रतिमाएं, इसके आगे एक अहोरात्र की ग्यारहवीं प्रतिमा, तथा एक रात्रि की बारहवीं प्रतिमा होती है।
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१०. क्रिया-स्थान (क्रियाओं के कारण) तेरह प्रकार के होते हैं - (१) अर्थक्रिया, (२) अनर्थक्रिया, (३) हिंसा क्रिया (४) अकस्मात् क्रिया, (५) दृष्टिविपर्यास क्रिया, (६) मृषा क्रिया, (७) अदत्तादान क्रिया, (८) अध्यात्म-क्रिया-मानसिक शोकादि क्रिया, (६) मान-क्रिया, (१०) मित्र-क्रिया (प्रिय जनों को कठोर दण्ड देने की क्रिया), (११) माया क्रिया, (१२) लोभ क्रिया, (१३) ईर्यापथिकी क्रिया। इनमें तेरहवीं ही प्रशस्त व आश्रयणीय है, अन्य नहीं ।
उत्तराध्ययन सूत्र
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