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________________ (सू.६८) (प्रश्न-) भन्ते! क्रोध पर विजय प्राप्त करने से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) क्रोध पर (स्वविवेक से, उसके दुष्परिणाम आदि पर चिन्तन-मनन करते हुए) विजय प्राप्त कर लेने से (जीव) क्षमा-भाव (सहन-शक्ति) को (स्वयं में) उत्पन्न करता है। (तब वह) क्रोध-वेदनीय (क्रोध के उदय से बन्धने वाले मोहनीय) कर्म का बन्ध (भी) नहीं करता है, और पूर्व में बन्धे हुए (संचित कर्मों) की निर्जरा करता है। (सू.६६) (प्रश्न-) भन्ते! मान (अहंकार-रूप कषाय-विशेष) पर विजय प्राप्त कर लेने से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) मान पर विजय प्राप्त कर लेने से (जीव) मार्दव (मृदु-कोमल आत्मपरिणाम) को (स्वयं में) उत्पन्न करता है। (तब वह) मान-वेदनीय (मान के उदय से बंधने वाले मोहनीय) कर्म का बन्ध नहीं करता है और पूर्व में बन्धे हुए (संचित कर्म) की निर्जरा करता है। (सू.७०) (प्रश्न-) भन्ते! 'माया' (छल-कपट पूर्ण आचरण की मनोवृत्ति ) पर विजय प्राप्त कर लेने से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'माया' पर विजय प्राप्त कर लेने से (जीव) ऋजुता (सरल-निष्कपट आचरण वाले आत्म-परिणाम) को (स्वयं में) उत्पन्न करता है। (तब वह) 'माया-वेदनीय' (माया के उदय से बंधने वाले मोहनीय) कर्म का बन्ध (भी) नहीं करता है, और पूर्व में बन्धे हुए (संचित कर्म) की निर्जरा करता है। (सू.७१) (प्रश्न-) भन्ते! 'लोभ' पर विजय प्राप्त करने से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) लोभ पर विजय प्राप्त करने से (जीव स्वयं में) सन्तोष-भाव (की वृत्ति) को उत्पन्न करता है। (तब वह) लोभ-वेदनीय (लोभ के उदय से बंधने वाले मोहनीय) कर्म का बन्ध नहीं करता और पूर्व में बंधे हुए (संचित कर्म) की निर्जरा करता है। अध्ययन-२६
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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