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________________ (सू.६५) (प्रश्न-) भन्ते! 'घ्राण-इन्द्रिय (की बहिर्मुखता व स्वविषय में प्रवृत्ति) के निग्रह' से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'घ्राण-इन्द्रिय के निग्रह' से (जीव) मनोऽनुकूल (सुगन्ध) व मनःप्रतिकूल (दुर्गन्ध) गन्ध के प्रति राग-द्वेष का निग्रह (अर्थात् उनके निरुद्ध हो जाने के स्वभाव का निर्माण) करता है। उस (घ्राण इन्द्रिय के तथा घ्राण-सम्बन्धी राग-द्वेष) के निमित्त से होने वाले कर्म का बन्ध (वह) नहीं करता, और पूर्व में बंधे हुए (संचित कर्मों) की निर्जरा (भी) करता है। (सू.६६) (प्रश्न-) भन्ते! 'जिह्वा इन्द्रिय (की बहिर्मुखता- स्वविषय में प्रवृत्ति) के निग्रह' से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'जिह्वा इन्द्रिय के निग्रह' से (जीव) मनोऽनुकूल (प्रिय) व मनःप्रतिकूल (अप्रिय) रसों के प्रति राग-द्वेष का निग्रह (अर्थात् उनके निरुद्ध हो जाने के स्वभाव का निर्माण) करता है। उस (जिह्वा इन्द्रिय के तथा रस-सम्बन्धी राग-द्वेष) के निमित्त से होने वाले कर्म का बन्ध (वह) नहीं करता, और पूर्व में बंधे हुए (संचित कर्मों) की निर्जरा करता है। (सू.६७) (प्रश्न-) भन्ते! 'स्पर्श इन्द्रिय (की बहिर्मुखता व स्व-विषय में प्रवृत्ति) के निग्रह' से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'स्पर्श इन्द्रिय के निग्रह' से (वह) मनोऽनुकूल (प्रिय) व मनःप्रतिकूल (अप्रिय) स्पर्शों के प्रति राग-द्वेष का निग्रह करता है। उस (स्पर्श इन्द्रिय के तथा स्पर्श-सम्बन्धी राग-द्वेष) के निमित्त से होने वाले कर्म का (वह) बन्ध नहीं करता, तथा पूर्व में बन्धे हुए (संचित कर्मों) की निर्जरा करता है। अध्ययन-२६ ६०१
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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