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(सू.४६) (प्रश्न-) भन्ते! 'आर्जव' (सरलता व निष्कपटता) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है?
(उत्तर-) आर्जव से काय की सरलता/अवक्रता, भाव-सम्बन्धी (मानसिक) सरलता/अवक्रता, भाषा की सरलता/अवक्रता तथा 'अविसंवादन' (अवंचक स्वरूप) को प्राप्त करता है । अविसंवाद-सम्पन्नता (व मन-वचन-काय की सरलता) के कारण, जीव 'धर्म' का आराधक होता है ।
(सू.५०) (प्रश्न-) भन्ते! 'मार्दव' (कोमल स्वभाव) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है?
(उत्तर-) मार्दव से (जीव) अनुद्धत भाव (निरभिमानता व अनुत्सुकता) को प्राप्त करता है । अनुद्धत/अनुत्सुक भाव के कारण जीव मृदु-मार्दव से सम्पन्न होता हुआ (जाति, कुल, बल, रूप, तप, श्रुत-ज्ञान, लाभ व ऐश्वर्य इन आठ विषयों से सम्बन्धित) आठ मदस्थानों का विनाश (निवारण) कर देता है ।
(सू.५१) (प्रश्न-) भन्ते! 'भाव-सत्य' (अन्तःकरण की वैचारिक शुद्धता/अन्तरात्मा की सत्यता) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है?
(उत्तर-) 'भाव-सत्य से' (जीव) भाव-विशुद्धि (अध्यवसायों की शुद्धता) को प्राप्त करता है। भाव-विशुद्धि को प्राप्त हुआ जीव अर्हन्त (परमेष्ठी देव) द्वारा प्ररूपित 'धर्म' की आराधना हेतु अभ्युत्थित (समुद्यत/कटिबद्ध) रहता है। अरिहन्त देव द्वारा प्ररूपित धर्म की आराधना में समुद्यत होकर (जीव) पर-लोक (में भी, जन्मान्तर में भी, धर्म-साधना- अनुकूल परिस्थिति प्राप्त करता हुआ) धर्म का आराधक होता है ।
अध्ययन-२६
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