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________________ (सू.३६) (प्रश्न-) भन्ते! (औदारिक आदि) 'शरीरों के प्रत्याख्यान' (त्याग) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता (उत्तर-) ('अयोगी' अवस्था के उपरान्त होने वाले) 'शरीर-प्रत्याख्यान' से सिद्धों के अतिशय (परम उत्कृष्ट) गुणों से सम्पन्न होकर जीव लोकाग्र (भाग में स्थित मुक्ति-स्थान) को प्राप्त कर परमसुखी हो जाता है। (सू.४०) (प्रश्न-) भन्ते! 'सहाय-प्रत्याख्यान' (दूसरों से सहयोग लेने का त्याग करने) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'सहाय-प्रत्याख्यान' से (जीव) एकीभाव को प्राप्त करता है। एकीभाव को प्राप्त करता हुआ जीव एकाग्रता (शुद्ध आत्म-स्वरूप एकत्व के आलम्बन) की भावना करता हुआ, स्वल्पभाषण करता है, विग्रहकारी वचन, कलह, कषाय-रहित (या अल्प-कषाय वाला) होता है, 'तू-तू मैं-मैं' (की झगड़े की स्थिति) से मुक्त हो (कर) संयम व संवर की प्रधानतायुक्त (स्थिति में) वह समाधिस्थ रहा करता है। (सू.४१) (प्रश्न-) भन्ते! 'भक्त-प्रत्याख्यान' (आमरण अनशन व्रत : संथारा) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता (उत्तर-) 'भक्त-प्रत्याख्यान' से (जीव) अनेक सैंकड़ों भवों (जन्म-मृत्यु की परम्परा) का निरोध करता (हुआ, अल्पसंसारी हो जाता) (सू.४२) (प्रश्न-) भन्ते! 'सद्भाव-प्रत्याख्यान' (चौदहवें गुणस्थान में 'शैलेशी' स्थिति के रूप में होने वाले- सर्वक्रियाओं के पूर्णतः 'पारमार्थिक' त्याग) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? अध्ययन-२६ ५८३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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