________________
LEO
१८. जो जिनेन्द्र द्वारा प्रत्यक्ष देखे गए तथा उनके द्वारा उपदिष्ट किए
गए (द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव- इन चार प्रकारों, या नाम, स्थापना, द्रव्य व भाव) इन चार प्रकारों से पदार्थों के प्रति स्वतः (बिना किसी से उपदेश प्राप्त किए ही) “(सर्वज्ञ ने जैसा कहा है) यह ऐसा ही है, अन्य रूप नहीं है" इस प्रकार (दृढ़) श्रद्धा
रखता है, उसे 'निसर्गरुचि' समझना चाहिए। १६. जो (किसी) अन्य से - छद्मस्थ या जिनेन्द्र देव से- उपदिष्ट
(होकर, उस उपदेश में प्रतिपादित) इन (जीव, अजीव आदि) पदार्थों पर श्रद्धान करता है, उसे 'उपदेशरुचि' जानना चाहिए ।
PARAD44
२०. जिस व्यक्ति के राग, द्वेष, मोह, अज्ञान दूर हो गए हों, उसकी
आज्ञा (से तत्वों) में रुचि रखने वाला 'आज्ञारुचि' नामक (सम्यक्त्वी ) होता है।
२१. जो 'श्रुत' का अध्ययन करता हुआ, अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य
'श्रुत' (सम्बन्धी अध्ययन आदि के कारण) से सम्यक्त्व को प्राप्त करता है, उसे 'सूत्ररुचि' जानना चाहिए।
२२. जल में फैल जाने वाली तेल की बूंद की भांति (जीव आदि पदार्थों
में से किसी) एक पद (पदार्थ के ज्ञान) से अनेक पदों (पदार्थों के ज्ञान के रूप) में जिसका सम्यक्त्व विस्तृत हो जाता है, उसे
'बीजरुचि' समझना चाहिए। २३. जिसने ग्यारह अंग, प्रकीर्णक, दृष्टिवाद (आदि) श्रुतज्ञान को
अर्थसहित देखा-अधिगत किया हो, वह 'अभिगम-रुचि' होता
है।
अध्ययन-२८
५४१