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________________ ३०. “(यज्ञ-स्तूप के साथ) पशुओं के बन्धन (व वध को प्रतिपादित करने वाले (तथाकथित) समस्त वेद, तथा (पशु-हिंसा) पाप-कर्म के साथ किया गया यज्ञ (ये) उस दुःशील (अनाचारी) व हिंसक की रक्षा नहीं कर सकते, क्योंकि कर्म बलवान होते हैं।" ३१. “मात्र सिर मुंडाने से कोई श्रमण नहीं हुआ करता। न ही ओंकार (के जप आदि) से (कोई) ब्राह्मण होता है। (इसी प्रकार) न ही वनवास करने (मात्र) से कोई मुनि होता है, और न ही कुश (से निर्मित) चीवर पहनने (मात्र) से 'तापस' होता ३२. “(वस्तुतः कोई व्यक्ति) समता-भाव (रखने) से 'श्रमण' होता है, ब्रह्मचर्य पालन से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से 'मुनि' होता है, और तप से 'तापस' होता है।" ३३. “यथार्थ में तो प्रशस्त कर्म से (ही कोई व्यक्ति) ब्राह्मण होता है, कर्म से ही क्षत्रिय होता है, कर्म से ही वैश्य होता है, और शूद्र (भी) कर्म से (ही) होता है।" ३४. “बुद्ध सर्वज्ञ (अर्हन्त देव) ने इन (अहिंसा आदि) तत्वों को प्रकट किया है। इन (की साधना) से जो व्यक्ति 'स्नातक' (केवली या पूर्णता को प्राप्त) होने वाला होता है, समस्त कर्मों से विनिर्मुक्त होने (की क्षमता) वाले उस (व्यक्ति) को (ही) हम ब्राह्मण कहते ३५. “इस प्रकार के (विविध) गुणों से युक्त जो उत्तम द्विज होते हैं, वे (ही) स्वयं का तथा दूसरे का उद्धार कर पाने में समर्थ होते अध्ययन-२५ ४८७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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