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८५. (महामुनि केशीकुमार ने कहा-) “हे गौतम! आपकी प्रज्ञा श्रेष्ठ
है। आपने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया है। हे संशयातीत! सर्व-सूत्रों (सिद्धान्त-शास्त्रों आगमों) के समुद्र! आपको (मेरा)
नमस्कार है।” ८६. इस प्रकार (अपने) संशय का निवारण हो जाने पर, घोर पराक्रम
वाले केशीकुमार श्रमण ने महायशस्वी गौतम स्वामी को सिर झुकाकर अभिवन्दना की और
८७. (उन्होंने) पूर्व (आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव) तथा पश्चिम
(अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर) के सुखावह कल्याणकारी मार्ग में (अथवा पूर्व तीर्थंकर भ. पार्श्वनाथ के चातुर्याम धर्म से अन्तिम तीर्थंकर के द्वारा प्रतिपादित मार्ग में) भावपूर्वक ‘पांच महाव्रत' रूप धर्म को वहां अंगीकार किया।
८८. (उस उद्यान में) केशीकुमार श्रमण तथा गौतमस्वामी के (मध्य
हुए) उस 'समागम' में श्रुत (ज्ञान) व शील (चारित्र) का उत्कर्ष हुआ और महान् अर्थ वाले (अर्थात् मोक्ष के साधक) पदार्थों (शिक्षाव्रतों, नियमों व साधुचर्या आदि) के सम्बन्ध में निश्चय (भी) हुआ। (इस धर्म-चर्चा से) समस्त (देव-मनुष्य) परिषद् संतुष्ट हुई, और सन्मार्ग के प्रति समुद्यत (भी) हुई। (उस परिषद् द्वारा) उन (दोनों-) भगवान् केशीकुमार व भगवान् गौतम स्वामी की स्तुति की गयी, वे प्रसन्न हों। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-२३
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