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________________ ७१. (गौतम स्वामी ने कहा-) “जो नौका सछिद्र होती है, वह पार नहीं हो सकती। किन्तु जो छिद्र रहित नौका होती है, वह पार जा सकती है।” ७२. श्रमण केशीकुमार मुनि ने गौतम स्वामी से कहा- “आपने किस नौका का कथन किया है?” (तदनन्तर) यह कहने पर केशीकुमार को गौतम स्वामी ने यह कहा ७३. “(इस) शरीर को नौका कहा है, जीव को नाविक कहा है और जन्म-मृत्यु रूप संसार को समुद्र कहा है, जिसे महर्षि कर्मों के आगमन रूपी छिद्र से रहित, शरीर रूपी नौका द्वारा पार कर पाते हैं।" ७४. (महामुनि केशीकुमार ने कहा-) “हे गौतम! आपकी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। आपने ने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया। (किन्तु एक) अन्य संशय भी मुझे है, हे गौतम! उसके विषय में (भी) मुझे आप बताएं।” ७५. (हे गौतम!) घोर अन्धकार में बहुत से प्राणी रह रहे हैं। समस्त संसार में उन अज्ञान से अन्ध बने जीवों के लिए कौन प्रकाश (मार्ग दर्शन) करेगा? ७६. (गौतम स्वामी ने कहा-) “समस्त लोक को प्रकाशित करने वाला विमल (मेघादि से अनाच्छादित) सूर्य उदित हो चुका है। वह (ही) समस्त लोक में प्राणियों के लिए प्रकाश (मार्गदर्शन) करेगा।" ७७. श्रमण केशीकुमार मुनि ने गौतम स्वामी से कहा- “आपने किस सूर्य का कथन किया है?" (तदनन्तर) यह कहने पर केशीकुमार को गौतम स्वामी ने यह कहा अध्ययन-२३ ४५१
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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